विद्यार्थी जीवन एक ऐसा जीवन है जिसमें हर एक व्यक्ति मस्ती के साथ शिक्षा ग्रहण करते हुए प्रगति की राह पर बढ़ना चाहता है.हाँ आपकी सोच सही है पर आगे तो वही बढ़ता है जो इंटरटेनमेंट तो करता है पर पढाई के समय एकाग्रता के साथ आगे बढ़ता है .हर एक विद्यार्थी को आगे बढ़ने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करना बेहद ही जरूरी होता है.
विद्यार्थी जीवन ही मानव जीवन की नींव है -आइए हम उन्नति की राह पर चलते है -
पॉजिटिव चेंजेज होना -
इधर कुछ सालों में इंडियन स्टूडेंट्स में काफी पॉजिटिव चेंजेज देखने को मिल रहे हैं. पहले जहां वह अपने ऊपर काफी प्रेशर महसूस करता था, अपने व्यूज देने में संकोच करता था, वहीं आज उसने अपने ऊपर का प्रेशर बहुत हद तक कम कर दिया है. वह निर्भीक होकर अपने व्यूज भी लोगों को देता है. जो चीज उसे सही नहीं लगती है, उसके बारे में अपने विचार रखने में संकोच नहीं करता है. वह लगातार चेंज चाहता है और इसके लिए अगर जरूरत पडती है, तो बडे डिसीजन लेने में भी हिचकता नहीं है. स्टूडेंट्स के अंदर तेजी से आ रही यह नई क्वॉलिटी निश्चित ही कंट्री को सभी सेक्टर्स में आगे ले जाने का काम करेगी.
मेक योर डिसीजन-
हालांकि अभी भी एक चीज की कमी स्टूडेंट्स में दिखाई दे जाती है कि वह बहुत सी चीजों में सेल्फ डिसीजन लेने में कतराता है. मिडिल क्लॉस में यह सिचुएशन कुछ ज्यादा दिखाई देती है. वह थोडी सी सक्सेस में ही सटिस्फाइड हो जाता है. आगे बढने के प्रयास कम कर देता है. इस चीज से बाहर निकलें. जॉब से सटिस्फाइड तो होना है, लेकिन इसके बाद आगे बढने की कोशिश ही बंद कर दी जाए, यह कहां की समझदारी है. अपने डिसीजन खुद लें. आगे बढें और दूसरों को भी आगे बढने के जितने चांस हो सकें दिलाएं.
पहचानें यूनीक स्किल्स को-
हर स्टूडेंट में कोई न कोई ऐसी स्किल जरूर होती हैं, जो उसे औरों से कहीं अलग कर देती है. उसे यूनीक बनाती है, लेकिन पता नहीं क्यों बहुत से स्टूडेंट्स अपनी ऐसी क्वॉलिटीज पर ध्यान ही नहीं देते हैं. जॉब मिल जाने या फिर मनचाहे कोर्स या कॉलेज में एडमिशन मिल जाने पर, तो फिर इसे वे भूल ही जाते हैं. याद रखिए, अपनी स्किल्स को हमेशा मजबूत करते रहें. कम से कम इसे हॉबी के रूप में तो जिंदा रखें ही. कभी न कभी ये जरूर काम आती है.
सोच बदलने की जरूरत
आज सभी फील्ड में इंडिया का कंपेरिजन चीन के साथ हो रहा है. चीन हमसे बहुत सी चीजों में आगे है और यह अंतर बढ भी रहा है. इसका बस एक कारण है, वहां क्रिएटिविटी को प्रमोट किया जाता है. जो जिस सब्जेक्ट या फील्ड में बेटर कर रहा है, उसे उसी में आगे बढाने की कोशिश की जाती है. अपने यहां अभी इस तरह की सोच डेवलप नहीं हुई है. हम ओवरऑल परफॉर्मेस की बात करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि कम्प्लीट शब्द में हमेशा नया करने की गुंजाइश बनी रहती है. दूसरों की कमियां न निकालें. कमियां तो लोगों ने थॉमस एडिसन में भी निकाली थीं, लेकिन पहले खुद को देखें. ग्राउंड लेवल पर जो वर्क को शेप देता है, असली सक्सेस उसी की है. उसके बाद स्टेप बाई स्टेप चेंज होते रहते हैं.
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