तितलियों की तरह उड़ना तो वह भी चाहती थी, औरों की तरह सभी को अपनी साड़ी - चुनरी का रंग दिखाना चाहती थी। उसके भी अरमान थे, हौंसलों की उड़ान से आसमान छूना वह भी चाहती थी, गलियां हुईं बदनाम, यहां से मुक्त होना वह चाहती थी।।
पैसों की खनक न उसको भाती थी, चूडि़यों की आवाज़ न उसको लुभाती थी, आज़ाद परिंदे की तरह वह भी खुला आसमान चाहती थी।
यूं तो हर रात में उसके भरते थे रंग, मगर इस बदरंग जीवन से छुटकारा चाहती थी, कुछ पढ़ना, समझना वह भी चाहती थी।।
जी हां, कमाठीपुरा, बुधवार पेठ, ढोढर, परवलिया न जाने कितने नाम मगर हर नाम में लगभग एक सी कहानियां। यहां की गलियां, बस्ती हर रात रंगीन होती हैं। आने वालों को यहां शायद स्वर्ग से भी अधिक सुख मिलता है। मगर यहां रहने वाली वेश्याओं का जीवन क्या इतना सहज और सरल है? क्या उनका दर्द कोई जान पाया है। नहीं, उनके दर्द का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। आम बस्ती से दूर ये काम वासना तृप्त करने के ऐसे पनागाह हो गए हैं जहां नारी वासना का प्याला बन जाती है। वासना की सुरा से प्यासे को जमकर तृप्त किया जाता है मगर असल में तृप्ति देने वाली इन स्त्रियों के जीवन में बेहद मायूसी है।
ये महिलाऐं अपने इस जीवन से अलग - जीवन की कल्पना नहीं करती हैं। मगर इस जीवन का बोझ उठाना बेहद मुश्किल है। तरह - तरह के ग्राहक यहां रहने वाली वेश्याओं के पास आते हैं और वेश्याऐं इनकी सभी इच्छाऐं पूरी करती हैं। हां इसके इतर ये वेश्याऐं अपने जीवन में खालीपन महसूस करती हैं मगर समाज के सभ्य मायने इनके जीवन में गहराने वाले अंधेरे को दूर नहीं करते हैं। बल्कि समाज से इन्हें काट दिया जाता है।
समाज से अलग होकर ये अपना जीवन जीते हैं। सबसे खास बात यह है कि भारतीय समाज सेक्स की मान्यताओं को लेकर अभी भी परिपक्व मानसिकता नहीं रखता है। यहां सेक्स शब्द का इस्तेमाल करना ही कुछ इस तरह से माना जाता है जैसे कोई बड़ा पाप कर दिया हो।
हां, हमारे धर्म ग्रंथों में सेक्स को लेकर कुछ अलग मान्यताऐं हैं हमारे अति प्राचीन मंदिरों और पवित्र गुफाओं मे जिस तरह के चित्र मिलते हैं उनमें तो एक स्त्री पशु से घोड़े से और एक पुरूष स्त्री के साथ सेक्स करते हुए प्रदर्शित किया जाता है.
फिर वात्स्यायन का काम सूत्र हम कैसे भूल सकते हैं। वात्स्यायन का काम सूत्र ऐक ऐसा ग्रंथ है जिसमें काम के बारे में कई जानकारियां दी जाती हैं फिर गणिकाओं और नगर वधु भी पहले के समय में हुआ करती थी इन्हें उचित सम्मान प्राप्त था मगर आज के समय में हमने वेश्याओं को अपमान का घूंट पीने पर मजबूर कर दिया है। आखिर ऐसा क्यों।
क्यों वेश्याऐं समाज में उचित स्थान प्राप्त नहीं कर सकती हैं। क्यों हवस के लिए उन्हें नोचा जाता है और वे समाज की मुख्य धाराओं में नहीं आ सकती हैं। केवल काम वासना तृप्ति का इससे संबंध नहीं है। वेश्याओं पर लोग कई बार अपना गुस्सा भी उतारने लगते हैं। मगर वे सबकुछ सहती हैं। समाज में वेश्याओं को मुख्यधारा में लाने के प्रयास वास्तविकता के धरातल से कोसों दूर हैं।
कई बार प्रयास होते हैं लेकिन कुछ स्वार्थी लोग इन स्त्रियों को उनका अधिकार नहीं पाने देते हैं। कई बार तो परंपरा का हवाला देकर यह सब जारी रखा जाता है। जैसा कि राजस्थान से सटे मध्यप्रदेश के ढोढर क्षेत्र में होता है। यह नीमच से सटा हुआ है। मान्यता है कि यहां पर बांछड़ा समुदाय की स्त्रियां खिलावड़ी प्रथा का पालन करती हैं। खिलावड़ी प्रथा वह प्रथा है जिसमें घर की बड़ी बेटी परिवार का भरण - पौषण करने के लिए देह व्यापार को अपनाती है। यह प्रथा अभी भी जारी है।
वर्तमान समय में भारतीय समाज में सेक्स को लेकर अन्य मान्यताऐं भी प्रचतिल हैं जो समाज को भटकाव और अधूरेपन की ओर ले जाती हैं। एक ओर तो 16 वर्ष की आयु में सहमति से सेक्स को कानून अधिकार दे दिया गया है मगर दूसरी ओर इसके वैध और अवैध व्यापार की बात सामने रख दी गई है। ऐसे में युवा वर्ग दिग्भ्रमित होता है। जिसके नतीजे विघटन के तौर पर सामने आते हैं। इन वेश्याओं के जीवन को सुधारने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने की जरूरत है। समाज में रहने वाले लोगों को ही इस ओर ध्यान देना होगा।
'लव गडकरी'