पिछले भाग में हमने आपको शिवजी के अट्ठारहवें अवतार के बारे में बतया था.आज हम बतायेगे शिवजी के उन्नीसवे अवतार के बारे में- यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था. धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया. इसके बाद अमृत कलश निकला. अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं. देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा. अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए. तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शंकर भगवान हैं. सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी. जाने शिवजी के 19 अवतारों के बारे में