सोमवार को चीनी सेना गलवन घाटी में पीछे हट गई है. जिसको भारतीय सेना की बढ़ी कामयाबी माना जा रहा है. भारत और चीन की सेना और सरकारों के बीच मई से विवाद चल रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया पर 15 जुलाई, 1962 को प्रकाशित एक खबर वायरस हो रही है. इस खबर की हेडलाइन हर यूजर्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षत कर रही है. ये हेडलाइन है ‘Chinese Troops Withdraw from Galwan Post’ यानी चीनी सेना गलवां पोस्ट से पीछे हट गई है. -40 डिग्री तापमान में भी डटे रहेंगे जवान, इंडियन आर्मी ने बनाया ये प्लान खबर है कि भारतीय सेना गलवन घाटी में चीनी सेना के पीछे हटने की जानकारी देने से कतरा रही है. साथ ही, भारतीय सेना ने कुछ जानकारी भी साझा की है. सेना का कहना है कि किसी भी प्रकार की लड़ाई को टालने के लिए दोनों सेना कुछ पीछे हट गई है. साथ ही, उन्होंने कहा, ‘यह बहुत छोटे कदम हैं और हमें सावधान रहने की जरूरत है. चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता. वही, इस सावधानी की एक वजह 15 जुलाई, 1962 को टाइम्स ऑफ इंडिया के रविवार अखबार का शीर्षक है क्योंकि इसके ठीक 96 दिन बाद 20 अक्तूबर को भारत और चीन के बीच युद्ध शुरू हो गया था. युद्ध गलवां घाटी में ही शुरू हुआ था. 10वीं पास के लिए बड़ी खबर, भारतीय डाक विभाग दे रहा सरकारी नौकरी का मौका आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 1962 में गलवन घाटी में भारतीय सेना ने किलेबंदी की थी. इस किलेबंदी में गोरखाओं की तैनाती की गई थी. जिसके बाद छह जुलाई के समय चीनी सैन्य पलटन ने गोरखाओं को इलाके में घूसते देखा और वापस जाकर मुख्यालय में जानकारी उपलब्ध कराई. चार दिन बाद, 300 चीनी सैनिकों ने 1/8 गोरखा रेजिमेंट को घेर लिया था. साथ ही, 15 जुलाई को अखबार की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीनी गलवां पोस्ट से 200 मीटर पीछे हट गए हैं. हालांकि कदम पीछे खींचने की समयावधि काफी छोटी थी और वे वापस आ गए. अगले तीन महीनों तक भारत और चीन ने एक दूसरे को विरोध पत्र सौंपे. नायक सूबेदार जंग बहादुर के नेतृत्व में गोरखाओं ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी और भारत के सैन्य इतिहास में किंवदंती बन गए. दिल्ली से बेरंग लौटे शिवराज, नहीं हो पाया विभागों का बंटवारा, हमलावर हुआ विपक्ष कानपुर शूटऑउट: उत्तराखंड बॉर्डर तक हो रही आरोपी विकास दुबे की खोज चीन की भारत को धमकी, कहा- तिब्बत मामले में दखल ना दें वरना....