आज 2 जून है. आज के दिन के लिए एक लोकप्रिय कहावत है कि वो लोग बड़े किस्मत वाले होते हैं, जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब होती है. मगर कभी आपने सोचा है कि आखिर इस मुहावरे का अर्थ क्या है. 2 जून की रोटी इतनी जरूरी क्यों होती है? मीम्स में भी 2 जून का बहुत प्रचलन है, लोग इसके जुड़े मजेदार पोस्ट सोशल मीडिया पर साझा भी करते हैं. इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ‘दो जून की रोटी’ का अर्थ क्या होता है! जिस ‘जून’ को हम महीने के तौर पर जानते हैं, उसे अवधी भाषा में ‘वक्त’ के तौर पर जाना जाता है. तो दो जून की रोटी का अर्थ हुआ, दो वक्त की रोटी. यानी प्रातः एवं शाम का भोजन. जब किसी को दोनों समय का खाना नसीब हो जाए तो उसे दो जून की रोटी खाना कहते हैं तथा जिसे नहीं मिलता उसके लिए कहा जाता है कि दो जून की रोटी तक नहीं नसीब हो रही है! बड़े-बड़े इतिहासकारों ने दो जून की रोटी का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है. प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक ने इस कहावत को अपनी कहानियों में सम्मिलित किया. महंगाई के दौर में अमीर तो भर पेट खाना खा लेते हैं, लेकिन निर्धनों के लिए दो जून की रोटी भी नहीं नसीब है. आपने इस प्रकार के वाक्य अक्सर कहानियों या खबरों में पढ़े होंगे. इसमें भी जून महीने से नहीं, बल्कि दो समय के खाने से ही मतलब है. आज 2 जून 2023 है तथा एक बार फिर सोशल मीडिया पर ये ट्रेंड हो रही है. एक तरफ जहां अवधी भाषा में जून का मतबल समय होता है, दूसरी तरफ लोग सोशल मीडिया पर ये अंदाजा लगाते रहते हैं कि आखिर रोटी को जून के महीने से ही क्यों जोड़ा गया है. ऐसे में लोग बहुत अनोखे अंदाजे लगाते हैं जो सुनने में गलत भी नहीं लगते. कुछ लोग बोलते हैं कि जून का महीना सबसे गर्म होता है तथा इसमें किसानों से लेकर निर्धन लोगों के लिए बहुत मुश्किल भरे दिन गुजरते हैं. जब वो काम कर के थक जाते हैं तथा बेहाल हो जाते हैं, तब जाकर उन्हें रोटी नसीब होती है. कई लोगों का मानना है कि ये कहावत आज की नहीं, बल्कि 600 वर्षों से चली आ रही है. क्या आप भी अपने पार्टनर को करने जा रहे है प्रपोज? तो इन चीजों का रखें ध्यान शेरवानी पहन घोड़ी पर सवार नजर आए एलन मस्क, इंटरनेट पर छाई तस्वीरें ख़बरों में छाया 'Audi ChaiWala', वीडियो देख चौंके लोग