आप सभी जानते ही होंगे कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि अचला सप्तमी कहते है. ऐसे में इस दिन सूर्यदेव की आराधना करना शुभ होता है और कहते हैं सूर्य भगवान ने इसी दिन पृथ्वी को अपनी दिव्य ज्योति से प्रकाशित किया था. ऐसे में इसे माघी सप्तमी, सूर्य सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी आदि नामों से पुकारते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं इससे जुडी दो ऐसी कथाएं जिन्हे शायद ही कोई जनता होगा. पौराणिक कथाएं कथा 1: भविष्य पुराण के सप्तमी कल्प में इस संदर्भ में एक कथा का उल्लेख मिलता है. एक गणिका ने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था. जब उसे अपने अंत समय का ख्याल आया तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई. उसने मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा. इसके उत्तर में मुनि ने कहा कि,आज माघ मास की सप्तमी अचला सप्तमी है. इस दिन सूर्य का ध्यान करके स्नान करने और सूर्यदेव को दीप दान करने से पुण्य प्राप्त होता है. गणिका ने मुनि के बताए विधि अनुसार माघ सप्तमी का व्रत किया, जिससे उसे मृत्युलोक से जाने के बाद इन्द्र की अप्सराओं में शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ. 2: भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था. एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए. वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था. शाम्ब उनकी दुर्बलता को देखकर जोर-जोर से हंसने लगा और अपने अभिमान के चलते उनका अपमान कर दिया. तब दुर्वासा ऋषि ने क्रोधवश शाम्ब को कुष्ठ होने का शाप दे दिया. शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा. पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना की, जिसके फलस्वरूप कुछ ही समय पश्चात उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई. रथ सप्तमी के व्रत रखने से होते हैं बड़े लाभ, जानिए यहाँ आरोग्य रहने के लिए करें रथ सप्तमी व्रत