लखनऊ: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में कोर्ट ने आदेश जारी किया है कि सरकारी जमीन पर बनी मदीना मस्जिद को ध्वस्त किया जाए। यह मस्जिद, जिसे मुस्लिम समुदाय वक्फ बोर्ड में पंजीकृत बता रहा था, लंबे समय से हिंदू संगठनों द्वारा अवैध घोषित किए जाने पर कानूनी विवाद में थी। कोर्ट ने मस्जिद की पैरवी कर रही कमिटी पर जुर्माना भी लगाया है। यह आदेश 22 अगस्त, 2024 को जारी हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मस्जिद बिंदकी क्षेत्र के मलवां कस्बे में करीब 20 साल पहले बनाई गई थी। शुरुआत में इसका आकार छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे इसे बढ़ाया गया, और यह वर्तमान में कस्बे और आसपास की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक मानी जाती थी। 2005 से हिंदू संगठनों ने इसे अवैध बताते हुए अदालत में लड़ाई लड़ी। उनका आरोप था कि मदीना मस्जिद ग्राम समाज की सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाई गई थी। इसके साथ ही, मस्जिद के पास एक मदरसा भी स्थापित कर दिया गया था। हालांकि, मुस्लिम पक्ष इन आरोपों को लगातार खारिज करता रहा। मस्जिद की पैरवी वक्फ सुन्नी मदीना मस्जिद कमेटी द्वारा की जा रही थी, जिसमें हैदर अली कोर्ट में पेश हो रहे थे। हिंदू संगठन की ओर से बिंदकी तहसीलदार की कोर्ट में केस दायर किया गया था। मस्जिद कमेटी ने अपने जवाब में दावा किया कि मदीना मस्जिद 20 साल पहले पट्टे पर दी गई जमीन पर बनाई गई थी और हिंदू संगठनों के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया। तहसीलदार की अदालत ने दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका दिया और क्षेत्रीय लेखपाल से आख्या मांगी। आख्या में साबित हुआ कि मस्जिद वास्तव में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाई गई थी, जिसमें लगभग 4 बिस्वा भूमि शामिल थी। 22 अगस्त को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए मदीना मस्जिद को सरकारी जमीन पर बना अवैध निर्माण करार दिया और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को इसे ध्वस्त करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने पुलिस को इस दौरान पूरी सुरक्षा प्रदान करने के भी निर्देश दिए। तहसीलदार अचलेश सिंह की कोर्ट ने मस्जिद कमेटी पर 65,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। हालांकि, वक्फ सुन्नी मदीना मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हैदर अली ने इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करने की योजना बनाई है। अगर, वक्फ बोर्ड, इस जमीन को वक्फ की साबित कर देता है, तो फिर अदालत को भी इसे वापस दिलवाने में कई मुश्किलें आएंगी, क्योंकि वक्फ कानून ही कुछ ऐसा है। क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितने अधिकार :- वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। लेकिन गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे। सास के प्यार में पागल हुआ दामाद, कुछ ऐसा हुआ प्रेम कहानी का अंत कलेक्टर ऑफिस के सामने लगे 'सर तन से जुदा' के नारे, 300 पर FIR दर्ज भारत के कारण बाढ़ आई..! अफवाह सुन मंदिर तोड़ने लगा मदरसा छात्र, खंडित की मूर्तियां