नई दिल्ली : इसे सरकार की धाक का नतीजा कहें या दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आई.बी.सी.) कानून में संशोधन का प्रभाव कि इस कानून में कार्रवाई शुरू होने से पहले ही जान-बूझकर बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाले कंपनियों ने डर के मारे 83हजार करोड़ रुपए का ऋण चुका दिया. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कंपनी मामलों के मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2,100 से ज्यादा कंपनियों ने बैंकों का लोन वापस कर दिया है. इनमें से अधिकांश ने आई.बी.सी. में संशोधन के बाद बैंकों का बकाया चुकाया. नए नियमों में सरकार ने आई.बी.सी. में संशोधन करके उन कंपनियों के प्रमोटरों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एन.सी.एल.टी.) की ओर से कार्रवाई शुरू हो जाने के बाद नीलाम हो रही किसी कंपनी के लिए बोली लगाने पर रोक लगा दी.इससे ऐसे ऋण को एनपीए घोषित करना पड़ा. हालाँकि सरकार के द्वारा किए इस संशोधन का उद्योग जगत ने कड़ा विरोध इसलिए किया ,क्योंकि इसका नामी-गिरामी औद्योगिक घरानों पर असर पड़ा.आशंका यह कि बड़ी संख्या में कंपनियों अयोग्य घोषित कर दिए जाने से नीलाम हो रही कंपनियों के लिए बड़ी बोलियां नहीं लग पाएगी जिससे बैंकों को अपने ऋण का छोटा हिस्सा ही वापस मिल सकेगा.लेकिन सरकार ने प्रमोटरों को बैंकों को चूना लगाकर अपनी ही कंपनी औने-पौने दाम में वापस पाने की अनुमति नहीं दी जाएगी .लेकिन सरकार ने बैंकों का बकाया चुकाने वाले प्रमोटरों को बोली लगाने की अनुमति दे दी. यह भी देखें ईंधन की कीमतों का दीर्घकालिक समाधान करेगी सरकार ईपीएफओ ने 7 माह में 39 लाख रोजगार पैदा किए