2200 कंपनियां छोड़ गई बंगाल, फिर भी 'दीदी' अजेय..! TMC पर भरोसे का कारण क्या?

कोलकाता: पश्चिम बंगाल से पिछले पांच वर्षों में 2200 से अधिक कंपनियों ने अपना व्यापार समेट लिया है, जिनमें 39 लिस्टेड कंपनियां भी शामिल हैं। राज्यसभा में बीजेपी सांसद समिक भट्टाचार्य के सवाल के जवाब में यह आंकड़े सामने आए हैं। कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने बताया कि इन कंपनियों ने अपना रजिस्टर्ड ऑफिस भी बंगाल से बाहर स्थानांतरित कर लिया है। ये कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग, फाइनेंस और कमिशन एजेंसी जैसे विभिन्न सेक्टर्स से जुड़ी थीं। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1970 के दशक में पश्चिम बंगाल कंपनियों के पंजीकरण के मामले में महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर था, लेकिन 2021 तक यह आठवें स्थान पर पहुंच गया, इस दौरान यहाँ कांग्रेस, लेफ्ट और ममता बनर्जी के नेतृत्व में TMC का लंबा शासन रहा। इसके बावजूद अगर राज्य की स्थिति लगातार ख़राब होती चली गई, तो जवाब कांग्रेस, लेफ्ट और TMC से माँगा जाना चाहिए।  इन आंकड़ों से राज्य के औद्योगिक माहौल और रोजगार के अवसरों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीजेपी नेताओं ने ममता बनर्जी की सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य में कंपनियों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। उनका कहना है कि उद्योग विरोधी नीतियों और असुरक्षित वर्क एनवायरनमेंट के कारण कंपनियां यहां से पलायन कर रही हैं। बीजेपी के अमित मालवीय ने इसे ममता सरकार की नाकामी करार दिया, जो प्रदेश में बेरोजगारी और औद्योगिक ठहराव का कारण बन रही है। 

दूसरी ओर, टीएमसी नेता साकेत गोखले ने इस सवाल को पक्षपातपूर्ण बताते हुए कहा कि भाजपा बंगाल की नकारात्मक छवि प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है। उल्लेखनीय है कि, बीते कुछ समय में TATA,  ब्रिटैनिया जैसे बड़ी कंपनियों ने बंगाल को अलविदा कह दिया है, टाटा प्लांट का विरोध तो खुद ममता बनर्जी ने किया था, जो बाद में दूसरे राज्य में शिफ्ट हो गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब इतने बड़े स्तर पर कंपनियां बंगाल छोड़ रही हैं और रोजगार का संकट बढ़ रहा है, तो इसके बावजूद राज्य में जनता द्वारा इस मुद्दे पर आवाज क्यों नहीं उठाई जा रही? न तो महंगाई और बेरोजगारी पर प्रदर्शन हो रहे हैं, न ही सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जनता सवाल पूछ रही है। चुनावी नतीजों को देखकर लगता है कि बंगाल की जनता ममता सरकार से संतुष्ट है और लगातार उन्हें सत्ता में ला रही है। 

क्या वाकई बंगाल की जनता इन मुद्दों पर वोट नहीं करती, या फिर सच कुछ और है? क्या डर और दबाव की राजनीति ने ममता सरकार को यहां टिकाए रखा है? जब दूसरे राज्यों में प्रदर्शन और विरोध होते हैं, तो बंगाल में ऐसा क्यों नहीं दिखता? क्या यह मान लिया जाए कि बंगाल में बेरोजगारी, महंगाई और सुरक्षा जैसे मुद्दे वोटिंग पैटर्न को प्रभावित नहीं करते? यहाँ सिर्फ डेमोग्राफिक चेंज और डर काम करता है, जैसा अक्सर चुनावों में देखा भी जाता है, जब बंगाल हिंसा और दंगों में घिर जाता है। 

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