कोच्ची: केरल के सिरो मालाबार चर्च ने वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि हड़पने की चल रही प्रक्रिया पर गहरी चिंता जताई है। 10 अगस्त को चर्च ने लोकसभा सचिवालय में एक औपचारिक शिकायत दर्ज की, जिसमें एर्नाकुलम जिले के चेराई और मुनंबम गांवों में लगभग 600 स्थानीय मछुआरा परिवारों की कठिनाइयों का जिक्र किया गया। ये परिवार वक्फ बोर्ड के दावों के कारण अपने घरों और जमीनों से बेदखल होने के खतरे का सामना कर रहे हैं। चर्च ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक में ऐसे प्रावधान शामिल करने की अपील की है, जो इन परिवारों को उनकी संपत्ति खोने से बचा सकें। सिरो मालाबार चर्च का यह रुख वक्फ बोर्ड के प्रस्तावित संशोधन विधेयक के सामान्य समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जो समुदायों को अनुचित दावों से सुरक्षा प्रदान करने का एक संभावित समाधान मानता है। भूमि का यह विवाद सदियों पुराना है, जिसकी जड़ें 1865 तक फैली हुई हैं। उस समय राजा अयिलयम तिरुनल ने स्थानीय लोगों को पंडारा पट्टम (एक शाही पट्टा) प्रदान किया था। यह भूमि हाजी मूसा सैत को सौंपी गई थी, जो कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की शर्त पर थी। समय के साथ, स्वामित्व बदलता रहा, और 1959 में यह फारूक कॉलेज के पास पहुंचा, जब हाजी मूसा सैत के उत्तराधिकारी सिद्दीक सैत ने संपत्ति को संस्थान को सौंप दिया। स्थानीय मछुआरे परिवारों का दावा है कि 1989 और 1990 के बीच उनके पूर्वजों ने कानूनी रूप से फारूक कॉलेज से जमीन खरीदी थी। तब से ये परिवार उस जमीन पर निवास कर रहे हैं और दशकों से बिना किसी विवाद के वहां रह रहे हैं। हालांकि, 2019 में वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि 404 एकड़ जमीन उनकी है, जिससे कानूनी चुनौतियाँ शुरू हुईं। 2022 तक, स्थानीय ग्रामीणों को ग्राम कार्यालय के माध्यम से औपचारिक बेदखली नोटिस मिले। वक्फ बोर्ड का कहना है कि जमीन को एक पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा अवैध रूप से बेचा गया था। यह मामला अदालत में लड़ा जा रहा है, और स्थानीय मछुआरे परिवार अपने घरों को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। सिरो मालाबार चर्च की शिकायत इस समुदाय की व्यापक चिंताओं को उजागर करती है, जो वक्फ बोर्ड के दावों के प्रति असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इस विवाद ने केरल में भूमि स्वामित्व कानूनों की जटिलताओं को सामने लाया है और वक्फ बोर्ड के अधिकारों पर बहस छेड़ दी है। कई लोग मानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन इस विवाद को सुलझाने में मदद कर सकते हैं। जैसे-जैसे कानूनी कार्यवाही जारी है, प्रभावित परिवार सिरो मालाबार चर्च के समर्थन से उम्मीद कर रहे हैं कि विधायी सुधारों से उन्हें न्याय मिलेगा और उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान होगा। क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितनी ताकत ? वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में नरसिम्हा राव सरकार ने एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। यह भी ध्यान दें कि, अगर आप काशी-मथुरा जैसे अपने किसी मंदिर को अतिक्रमणकारियों द्वारा तोड़ने और वहां कब्जा करने का मामला लेकर अदालत जाएंगे, तो इसी कांग्रेस का पूजा स्थल कानून 1991 आपको रोक देगा, ये कहकर कि 1947 में जिस स्थल का धार्मिक चरित्र जो था, वही रहेगा। लेकिन वक्फ औरंगज़ेब के समय में दान की गई कथित जमीन पर भी कब्जा कर सकता है और फिर भी आप कोर्ट नहीं जा सकते, क्योंकि, कांग्रेस का ही वक्फ कानून आपको रोकेगा। और वक्फ को इसका कोई सबूत पेश करने की भी जरूरत नहीं होगी कि सचमुच ये जमीन उसकी है। क्या कांग्रेस के इन दो कानूनों में विशुद्ध धोखाधड़ी नहीं दिखती, जहाँ गैर-मुस्लिमों से इन्साफ का अधिकार ही छीन लिया गया है ? अगर इस तरह भारत सरकार चन्द्रगुप्त मौर्य के समय का नक्शा इस्तेमाल करके जमीनों पर कब्जा शुरू कर दे, तो वक़्फ़ वालों के पास क्या बचेगा ? यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। देश की 9 लाख एकड़ जमीन सरकार के हाथ से निकलकर वक्फ के हाथ में चली गई और जनता को पता ही नहीं कि देश किसने बेचा ? हर साल वक्फ का सर्वे होता है और उसकी संपत्ति बढ़ जाती है, पूरे के पूरे गांव को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और कहीं सुनवाई भी नहीं होती। गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे। माली में ईसाईयों को वही धमकी, जो कभी कश्मीरी हिन्दुओं को मिली थी, मानवाधिकार खामोश स्कूलों के लिए योगी सरकार ने जारी की ये नई गाइडलाइन योगी मॉडल पर क्यों चल पड़ी कांग्रेस! क्या हिन्दू वोटों को लुभाने की कोशिश ?