नई दिल्ली: चांद पर इतना ऑक्सीजन मौजूद है कि उससे 800 करोड़ लोग एक लाख वर्षों तक सांस ले सकते हैं. यह दावा किया है ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी और NASA ने. दोनों एजेंसियों ने अक्टूबर के महीने में एक डील की थी, जिसमें बताया गया है कि ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी के रोवर को NASA चांद पर लैंड करेगा. इसके लिए वह अपने अर्टेमिस प्रोग्राम (Artemis Program) का इस्तेमाल करेगा. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह ऑक्सीजन चांद की ऊपरी सतह पर मौजूद है. ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी (ASA) का उद्देश्य है कि वह अपने लूनर रोवर (Lunar Rover) के माध्यम से चांद की सतह से पत्थर जमा करके उनसे सांस लेने योग्य ऑक्सीजन को निकाल सके. चौंकाने करने वाली बात ये है कि ये होगा कैसे. इस पर NASA कहती है कि पूरे विश्व की वैज्ञानिक संस्थाएं, सरकारें और एजेंसिया चांद पर कॉलोनी बनाने के लिए जमकर पैसे लूटा रही है. नई तकनीक तलाश रही है और बना रही हैं. हम भी ये काम कर सकते हैं. चांद पर एक काफी पतला वायुमंडल है. इसमें हाइड्रोजन, नियॉन और आर्गन गैसों का मिश्रण है. इन गैसों के माध्यम से स्तनधारी जीव जैसे मनुष्य चांद पर जीवित नहीं रह सकते. वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद की ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन गैस के रूप में मौजूद नहीं है. वह पत्थरों और परतों के नीचे दबी हुई है. हमें उसकी सतह से ऑक्सीजन को निकालना होगा ताकि इंसानी बस्ती को बसाने का कार्य सरलता से किया जा सके. बता दें ऑक्सीजन किसी भी रूप में किसी भी खनिज से मिल सकता है. चांद की पूरी सतह पर उसी तरह ही पत्थर और मिट्टी मौजूद है, जैसी धरती पर मौजूद है. सिलिका, एल्यूमिनियम, आयरन और मैग्नीसियम ऑक्साइड चांद की सतह पर सबसे अधिक हैं. इन सबमें बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन मौजूद है. किन्तु ये ऑक्सीजन उस रूप में नहीं है, जिस रूप में हमारे फेफड़े ऑक्सीजन को खींचते हैं. दक्षिण कोरिया ने ईंधन के दाम कम किये दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्मॉग की परत ओडिशा ने पहली बार राष्ट्रीय योगासना खेल चैंपियनशिप की मेजबानी की