भारतीय न्यायपालिका में नए युग की शुरुआत..! कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्थानीय भाषा में सुनाया फैसला

बैंगलोर: कर्नाटक हाई कोर्ट ने न्यायिक फैसले को आम जनता के लिए अधिक सुलभ बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है। कोर्ट ने अंग्रेजी और कन्नड़ दोनों भाषाओं में वसीयत के प्रोबेट (किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के प्रशासन की प्रक्रिया) से जुड़े एक मामले (नंजवूडूथा स्वामीजी बनाम लिंगन्ना) में फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित और न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने यह पहल करते हुए स्थानीय भाषा के महत्व को रेखांकित किया।  

फैसले के दौरान न्यायमूर्ति दीक्षित ने क्षेत्रीय भाषा कन्नड़ को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “अगर कन्नड़ को जीवित रखना है, तो उसे न्यायिक प्रक्रिया में उचित पहचान मिलनी चाहिए। यह कदम एक नई परंपरा की शुरुआत है।” उनके साथ न्यायमूर्ति जोशी ने भी इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि अंग्रेजी का प्रभुत्व आम लोगों को न्यायिक प्रक्रिया से दूर कर देता है।  उन्होंने इंग्लैंड का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां 1730 तक कानूनी कार्यवाही लैटिन में होती थी, लेकिन आम नागरिकों की समझ के लिए इसे अंग्रेजी में बदला गया।  

न्यायाधीशों ने संविधान के अनुच्छेद 348(1)(ए) का हवाला दिया, जिसमें उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य किया गया है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यदि राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश की सहमति हो, तो क्षेत्रीय भाषाओं को न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कन्नड़ में फैसला सिर्फ अनुवाद नहीं था, बल्कि एक स्वतंत्र रचना थी। इससे अदालत और आम नागरिकों के बीच की दूरी को कम करने में मदद मिलेगी।  

इस कदम की अदालत में उपस्थित लोगों ने सराहना की। अधिवक्ताओं ने इसे न्यायपालिका को और अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक प्रगतिशील प्रयास बताया। न्यायमूर्ति दीक्षित ने विनम्रता से कहा, “हमने अपना काम कर दिया है, बाकी लोग चाहें तो इसे अपना सकते हैं।” हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब कर्नाटक हाई कोर्ट ने कन्नड़ में फैसला सुनाया हो। 2008 में न्यायमूर्ति अराली नागराज ने कन्नड़ में फैसला दिया था, जिसे 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने सराहा था।  

हालाँकि, एक तरह से कर्नाटक हाई कोर्ट की इस पहल ने अन्य राज्यों के लिए रास्ता खोल दिया है। यदि अन्य हाई कोर्ट भी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में फैसले देने लगें, तो यह न्यायपालिका को अधिक सुलभ और प्रभावी बना सकता है। अंग्रेजी का दबदबा बनाए रखते हुए क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने से न्यायिक प्रक्रिया आम जनता के करीब आएगी।  कर्नाटक हाई कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्यायपालिका में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। यह पहल न केवल क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देगी, बल्कि आम नागरिकों के लिए न्यायिक आदेशों को समझने में भी सहायक होगी। अब सवाल यह है कि क्या देश के अन्य उच्च न्यायालय भी इस रास्ते पर चलेंगे? यदि ऐसा हुआ, तो यह न्यायपालिका को और अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी बना सकता है।

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