आज हम आपको साल 2017 में देश और दुनिया के सामने आये एक ऐसे युवा चेहरे से मिलवाने जा रहे है जिसने बहुत कम समय में दलितों के हितो की रक्षा को अपना लक्ष बना कर देश की और विशेषकर गुजरात की राजनीती में भूचाल ला दिया. हम बात कर रहे है नव निर्वाचित विधायक जिग्नेश मेवाणी की. जिग्नेश मेवाणी गुजरात में चल रहे दलित आंदोलन का चेहरा हैं. गुजरात के वेरावल में दलितों की पिटाई के बाद भड़के दलित आंदोलन का नेतृत्व जिग्नेश ही कर रहे हैं. पत्रकार, वकील फिर कार्यकर्ता और अब नेता बने मेवाणी तब अचानक सुर्खियों में आए जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की कि 'अब दलित लोग समाज के लिए ''गंदा काम" नहीं करेंगे,' यानी मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकाला, मैला ढोना आदि. 1980 में गुजरात के मेहसाना में जन्मे मेवाणी इन दिनों मेघानीनगर में रह रहे हैं. यह अहमदाबाद का दलित बहुल इलाक़ा है. उनके पिता नगर निगम के कर्मचारी थे और अब रिटायर हो चुके हैं. महात्मा गांधी की 'दांडी यात्रा' से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने दलितों की यात्रा का आयोजन किया और उसे नाम दिया "दलित अस्मिता यात्रा''. वो एक जोशीले और जिज्ञासु आत्मा हैं. "मेवाणी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी, गुजराती और हिंदी में बात कर सकते हैं. चार साल पत्रकारिता के बाद मेवाणी एक्टिविस्ट बने. उन्होंने लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और अब गुजरात उच्च न्यायालय में पेशेवर वकील हैं. उनकी दायर कई पिटीशन में उन्होंने सरकार से भूमिहीन दलितों को भूमि देने की बात कही है. पिछले दो दशकों से गुजरात में नेताओं की कुछ कमी दिखती रही है. कांग्रेस का तो राज्य में जैसे कोई चेहरा ही नहीं है और गुजरात और गुजराती सिर्फ़ एक नेता को जानते हैं- नरेंद्र मोदी. 2015 में हार्दिक पटेल आए, पाटीदार नेता बने और आरक्षण मांगा. उनके समर्थन में लाखों लोग आए. मगर मेवाणी एक अलग मक़सद और योजना से आए हैं. जिग्नेश ने मोदी के खिलाफ अन्य राज्यों में छेड़ी जंग PM मोदी की उम्र पर जिग्नेश ने किया कमेंट, BJP ने कहा- सब संगत का असर शुरूआती रूझान में आगे चल रहे मेवानी और ठाकोर एक्जिट पोल हैं बकवास - जिग्नेश मेवाणी