दुनिया में 'मां' सबसे खूबसूरत अल्फ़ाज़ है। जब विश्वप्रसिध्द उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की के महान उपन्यास ‘मां’ की बात हो तो यह विरासत बेहद समृध्द हो जाती है। गोर्की की 'मां' के साथ ही हिन्दी सिनेमा की ‘मदर इंडिया’ भी जहन में तरोताज़ा हो जाती है। जबकि मुनव्वर राना साहब की गजलें ‘मां’ के सजल मन को और व्यापक बनाती है। वैसे, ‘मां’ शब्द से परिचय कराने का मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि जब ‘मां’ शब्द से हमारी तबीयत खिल उठती है तो फिर ‘बेटी’ शब्द से हमारे समाज को इतनी गुरेज क्यों है? ‘बेटी’ के लिए हमारी आत्मा मर क्यों जाती है? क्या बेटियों को अपनी खूबसूरत जिंदगी को जीने का अधिकार नहीं है? क्या बेटियां उस ईश्वर की कृति नहीं जिसने बाकियों को बनाया है? ऐसे कई सवाल बेटियों को लेकर जहन में कोंधना स्वभाविक है। यह विडंबना ही है कि बेटियां अखाड़ों में उतर सकती, वह दावपेंच नहीं लड़ा सकती, बाईक नहीं चला सकती, ‘पिंक’ की मीनल की तरह सेक्स के लिए ‘नो’ नहीं बोल सकती और ऐसे ढेरों काम है जो बेटियां नहीं कर सकती। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जहां हमारी कल्पना चावला जैसी बेटियां जमीं से आसमान तक पहुंचने की ‘कल्पना’ को साकार कर रही है, कंगना रानौत जैसी अभिनेत्री बिना गॉडफादर के बॉलीवुड में अपना परचम लहरा रही है, ऐसे कई उदाहरण है जिसने बेटियों को और मजबूती दी है। फिर वह कौन-सी ताकतें है जो ‘दंगल’ जैसी फिल्मों को बनाने के लिए मजबूर कर रही हैं, सरकारों को बेटी बचाओ आंदोलन को चलाने को विवश कर रही है, देश के प्रधानमंत्री को बेटियों के साथ सेल्फी लेने की जरुरत महसूस हो रही है। असल मायनों में देखा जाये तो यह आमिर का ‘दंगल’ नहीं बल्कि हमारी बेटियों का 'दंगल' है। समाज की तमाम विसंगतियों को पार करने का 'दंगल' है, सामाजिक बुराइयों के अखाड़ें में बेटियों को साबित करने का 'दंगल' है। अमूमन हमारे समाज में आज भी यही सोच है कि पिता के वंशज को बेटियां नहीं बल्कि बेटें चलाते हैं। यह सोच महावीर फोगाट की थी लेकिन उन्होंने इससे तुच्छ और महीन सोच उपर अपनी बेटियों के भविष्य की चिंता की। उन्होंने बेटियों को न सिर्फ कुश्ती के अखाड़े में लड़ने के दांवपेंच सिखाए बल्कि उन्होंने उन्हें समाज से लड़ने के करतब में भी बखूबी तराशा। हरियाणा ही नही बल्कि देश के कई हिस्से स्थापित पितृसत्ता और प्रतिष्ठा हत्यााओं के लिए कुख्यात है। देशभर में महिलाओं पर अत्याचार का ग्राफ अपने उन्माद पर है। भ्रूण हत्या ने देश की जड़ों को हिलाकर रख दिया। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज हर बेटियों के लिए महावीर फोगाट जैसे पिता की आवश्यक है। वह हर बेटियों के प्रेरणस्रोत है। आज के दौर में कंगना रानौत, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, गीता फोगाट, बबीता फोगाट और साक्षी मलिक जैसी देश की बेटियां है जिन्होंने समाज की तमाम चुनौतियों से लड़कर अपना एक मुकाम बनाया हैं। ऐसे में कहा जा सकता है हमारी बेटियों में हर मुसीबत से निपटने का हौसला हैं। मोदी ने कहा, Happy Birthday Rajinikanth