'पीएम मोदी को सीधी चुनौती देने वाला पद स्वीकार करो..', कांग्रेस की मांग पर राहुल बोले- सोचने के लिए वक़्त चाहिए..

नई दिल्ली: कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) ने शनिवार (8 जून) को दो प्रस्ताव पारित किए। इनमें से एक प्रस्ताव राहुल गांधी से लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद (LoP) स्वीकार करने का “सर्वसम्मति से” अनुरोध था। हालाँकि,  इस पद को लेकर राहुल गांधी ने कहा है कि उन्हें इस पर विचार करने के लिए वक्त चाहिए। कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल के अनुसार, राहुल गांधी ने CWC से कहा कि वह सोचकर ही कोई निर्णय लेंगे। 

वेणुगोपाल ने बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि CWC द्वारा पारित पहला प्रस्ताव, पिछले दशक की शासन शैली को निर्णायक रूप से खारिज करने के लिए देश के लोगों को बधाई देना था। उन्होंने कहा कि, “लोगों का फैसला प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) के लिए नैतिक हार है, जिन्होंने उनके नाम पर चुनाव लड़ा।” प्रस्ताव में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की भी जमकर प्रशंसा की गई। वेणुगोपाल के अनुसार, दूसरे प्रस्ताव में CWC ने सर्वसम्मति से राहुल से लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने का अनुरोध किया। वेणुगोपाल ने कहा कि सभी बातों के बावजूद - समान अवसर न मिलना, कांग्रेस के खातों को फ्रीज करना, ब्लैकमेल करना और नेताओं को डराना-धमकाना - पार्टी ने चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया है। 

क्या होता है LoP का पद ?

LoP एक कैबिनेट स्तर का पद है, जिसका काफी प्रभाव होता है, जिसके धारक को कैबिनेट मंत्री के समान वेतन, भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं। LoP संसद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो ED और CBI जैसी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों का चयन करने वाली प्रमुख समितियों का हिस्सा होता है और केंद्रीय सूचना आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुखों के चयन में सहायता करता है। दरअसल, दस साल पहले, जब कांग्रेस लोकसभा में 44 सीटों पर सिमट गई थी, जो विपक्ष के नेता के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए 10% सीटों (54 सांसदों) की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रही। नतीजतन कांग्रेस विपक्ष के नेता का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाई। बाद की लोकसभा में, कांग्रेस ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन फिर भी 52 सीटें आईं और फिर विपक्ष बनने से चूक गई। इस बार अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस के नेता बने, लेकिन आधिकारिक तौर पर विपक्ष के नेता नहीं बने। 2019 में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद तक से इस्तीफा दे दिया था, ये पद उन्हें अपनी माँ सोनिया गांधी से मिला था। हालांकि, इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल की हैं, जिससे विपक्ष के नेता की नियुक्ति निश्चित है।

कांग्रेस नेता अब राहुल गांधी से विपक्ष के नेता का पद संभालने की विनती कर रहे हैं। अगर वह सहमत होते हैं, तो राहुल गांधी के पास सीधे पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का अधिकार होगा और उन्हें प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष दोनों के साथ नियमित संपर्क बनाए रखना होगा। रचनात्मक असहमति व्यक्त करने और सत्तारूढ़ पार्टी को जवाबदेह बनाए रखने के लिए विपक्ष के नेता की भूमिका आवश्यक है। अगर राहुल गांधी मना करते हैं, तो अन्य संभावित उम्मीदवारों में शशि थरूर, मनीष तिवारी, केजी वेणुगोपाल और गौरव गोगोई शामिल हैं। दरअसल, पिछली लोकसभा में राहुल गांधी की संसदीय उपस्थिति महज 53 फीसद रही थी, यानी संसद सत्र के आधे समय वे सदन से गायब रहे। कभी यात्रा निकालते रहे, तो कभी विदेश यात्रा पर रहे। यदि वे विपक्ष के नेता बन जाते हैं, तो उन्हें हर संसद सत्र में मौजूद रहना होगा, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर के साथ तालमेल में काम करना होगा, कुल मिलाकर ये एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होगा। लेकिन, राहुल इसके लिए मानते हैं या नहीं, ये उन पर ही निर्भर है। 

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