एक लम्बे अंतराल के बाद 150 साल पुराने एडल्टरी कानून पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसा कह दिया है कि किसी को यकीन नहीं हो रहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष को हमारे संविधान में बराबर का अधिकार रखते हैं और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी और जस्टिस ए एम खानविल्कर की ओर से फैसला पढ़ा है. चीफ जस्टिस ने यह कहा कि हर किसी को बराबरी का अधिकार है और पति पत्नी का मास्टर नहीं है जो उसे हमेशा अपने कब्जे में रखेगा. कोर्ट ने आईपीसी की धारा- 497 को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि एडल्टरी को अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. जी हाँ, आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि एडल्टरी अब अपराध नहीं है. सबसे पहले यह जान लें कि क्या है एडल्टरी कानून - आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. एडल्टरी अब अपराध नहीं - IPC की धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक ठहराया है और इस पर पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है. कोर्ट ने कहा, हर किसी को बराबरी का अधिकार है और वहीं सीजेआई ने कहा, पति पत्नी का मालिक नहीं है हाँ लेकिन किसी एक जीवनसाथी के आत्महत्या करने पर केस दर्ज हो सकता है. तलाक का आधार हो सकता है एडल्टरी - वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा "व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए." आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसले में एडल्टरी को खारिज कर दिया. सबसे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपना और जस्टिस एम खानविल्कर का फैसला सुनाया और उसके बाद अन्य तीन जजों जस्टिस नरीमन, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने भी इस फैसले पर सहमति जताई. धारा 497: इन देशों में अब भी अपराध है 'व्यभिचार', मृत्युदंड तक मिल सकती है सजा मामी भांजे के साथ कमरे में बना रही थी संबंध तभी पहुँच गए मामा और फिर... पत्नी कमरे में यार संग ले रही थी मजे कि अचनाक विदेश से लौट आया पति और फिर...