उत्तरकाशी: 17 दिन की कड़ी मशक्कत के उपरांत 41 मजदूरों को सफलतापूर्वक बाहर निकालने वाला ऑपरेशन सिलक्यारा किसी सुरंग या खदान में फंसे मजदूरों को निकालने वाला देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन बन चुका है। इससे पहले वर्ष 1989 में पश्चिमी बंगाल की रानीगंज कोयला खदान से 2 दिन चले अभियान के उपरांत 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर लाया गया था। देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर इस अभियान को मकाम तक पहुंचा दिया है। 13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हो चुकी थी। जिसमे 65 मजदूर फंस गए थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम भी बना दी गई। उन्होंने 7 फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। 2 दिन के ऑपरेशन के उपरांत आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था। उस अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर हुए थे। 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से भी सम्मानित किया गया था। उस अभियान में मजदूरों की संख्या सिलक्यारा से अधिक थी, लेकिन उन्हें निकालने में समय कम लगा था। सिलक्यारा में 13वां दिन बीतने के उपरांत मजदूर बाहर निकाले जा सके। कुछ ऐसा ही एक अभियान साल 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्ढेरी गांव में हुआ था, जहां एक पांच साल का बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिर गया था। तकरीबन 50 घंटे की कड़ी जद्दोजहद के उपरांत बचाव दलों ने बच्चे को बाहर निकालने में कामयाबी मिली थी। इस अभियान में बराबर के ही अन्य बोरवेल को तीन फीट व्यास के लोहे के पाइप के माध्यम से जोड़कर बच्चे को बाहर निकाल लिया गया था। विदेशी धरती पर ये अभियान रहे चर्चित: थाई गुफा अभियान : 23 जून 2018 को थाईलैंड की थाम लुआंग गुफा में वाइल्ड बोअर्स फुटबॉल टीम गई और बारिश की वजह से हुए जलभराव की वजह से अंदर ही फंस। गुफा में निरंतर बढ़ रहे पानी के मध्य खिलाड़ियों को खोजना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था। तकरीबन 2 सप्ताह तक चले अभियान में 90 गोताखोर भी लगाए गए। सभी ने मिलकर टीम को बाहर निकाल लिया गया। इस बचाव अभियान में पूर्व थाईलैंड के नेवी सील समन कुनान को जान गंवानी पड़ गई। यह दुनिया के सबसे जटिल रेस्क्यू अभियान में से एक माना जाता है। चीली खदान अभियान : 5 अगस्त 2010 को सैन जोस सोने और तांबे की खदान के ढहने से 33 मजदूर उसमें दब गए थे। जमीन के ऊपर से तकरीबन 2000 फीट नीचे फंसे इन मजदूरों से संपर्क करना ही मुश्किल था। 17 दिन की मेहनत के उपरांत सतह के नीचे एक लाइफलाइन छेद बनाकर फंसे मजदूरों को भोजन, पानी, दवा भेजी जा सकी। 69 दिन के उपरांत 13 अक्टूबर को सभी मजदूरों को एक-एक करके सुरंग से बाहर निकाला गया। क्यूक्रीक माइनर्स अभियान : 24 जुलाई 2002 को अमेरिका के पेंसिल्वेनिया के समरसेट काउंटी की क्यूक्रीक माइनिंग इंक खदान में नौ मजदूर फंसे हुए थे। इन्हें केवल 22 इंच चौड़ी आयरन रिंग के सहारे 77 घंटे उपरांत बाहर निकाला जा सका था। 'अरविंद केजरीवाल हाज़िर हों..' गोवा कोर्ट ने दिए 29 नवंबर को पेश होने के आदेश, जानिए क्या है मामला ? "वे इंसान हैं, रोबोट नहीं..'', भारत में T20 सीरीज खेल रहे ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के लिए बोले पैट कमिंस वर्ल्ड कप फाइनल में भारत की हार का जश्न मनाने के लिए UAPA के तहत सात कश्मीरी छात्र गिरफ्तार