सुप्रीम कोर्ट ने 38 साल बाद फिर सुनाया वही फैसला, जिसे राजीव गांधी सरकार ने संसद में पलट दिया था

नई दिल्ली: बुधवार, 10 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा दायर कर सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986, इस धर्मनिरपेक्ष कानून का स्थान नहीं लेता है।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने CrpC की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण की मांग करने के अधिकार को बरकरार रखा, और अलग-अलग लेकिन एकमत निर्णय सुनाए। यह फैसला एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ चुनौती दिए जाने के जवाब में आया, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को 10,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि "CrPC की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।" पीठ ने यह भी कहा कि यदि धारा 125 के तहत आवेदन लंबित रहने के दौरान मुस्लिम महिला तलाक ले लेती है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत भी राहत मांग सकती है। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह अधिनियम CrPC की धारा 125 के साथ-साथ अतिरिक्त उपाय भी प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने घोषित किया था कि सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होने वाला एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है। हालांकि, इस फैसले को कट्टरपंथियों के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा पलट दिया था, जिससे मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को हवा मिली थी। यहीं से विवाद शुरू हुआ था कि, यदि मुस्लिम समुदाय ने धर्मनिरपेक्ष भारत में रहना चुना था, तो वे धर्मनिरपेक्ष कानून क्यों नहीं मान रहे ? और सरकार क्यों उनके दबाव में आकर सुप्रीम कोर्ट तक का फैसला पलट रही है ? राजीव गांधी सरकार के फैसले के कारण तत्कालीन कैबिनेट मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। क्योंकि, उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश न्याय और कुरान दोनों के हिसाब से सही है। राजीव सरकार द्वारा बनाए गए कानून के मुताबिक, तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है, उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के कानून के अनुसार चलना होगा। ये मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इंदिरा गांधी की अनुमति से 1973 में बनाया गया था, जिसमे मुस्लिमों के नागरिक कानून, इस्लाम के शरिया कानून के हिसाब से चलने की छूट दी गई थी, उसमे संविधान का दखल नहीं था।

बता दें कि CrPC की धारा 125 में यह अनिवार्य किया गया है कि पर्याप्त साधन वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी, बच्चों (वैध या नाजायज) और माता-पिता का भरण-पोषण करना चाहिए। इस धारा में 'पत्नी' शब्द में वह महिला शामिल है, जिसका तलाक हो चुका है और उसने दोबारा शादी नहीं की है। यह मामला हैदराबाद, तेलंगाना के एक मुस्लिम परिवार से आया है। मार्च 2019 में, एक मुस्लिम महिला ने पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि उसके पति अब्दुल समद ने उसे तीन तलाक के माध्यम से तलाक दे दिया है। उसने CrPC की धारा 125 के तहत 50,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की। अदालत ने शुरू में समद को जून 2023 में 20,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया।

अब्दुल समद ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी, जिसमें तर्क दिया गया कि उसने 2017 में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था और 'इद्दत' अवधि के दौरान पहले ही 15,000 रुपये भरण-पोषण के रूप में दे दिया था। दिसंबर 2023 में, उच्च न्यायालय ने भरण-पोषण राशि को संशोधित कर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया और पारिवारिक न्यायालय को छह महीने के भीतर मामले को सुलझाने का निर्देश दिया।

असंतुष्ट, अब्दुल समद ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। अब्दुल समद के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 (राजीव सरकार का कानून) के तहत, तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं सहित सभी महिलाओं पर धारा 125 की प्रयोज्यता की पुष्टि करते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया।

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