पुरातन काल में ऐसे कई लोग थे, जो विद्वान के रूप में जाने जाते थे। उन्ही में से एक आचार्य चाणक्य थे, जिन्होने अपनी कूटनीति से चन्द्रगुप्त मौर्य को सिंहासन दिलवाया। इनकी बातें और विचार इंसान के जीवन में एक बदलाव लाती है। खास बात तो यह है कि आज भी आचार्य चाणक्य की नीतियों का पालन किया जाता है, आज भी इनके विचार मानव जीवन के द्वारा लाभदायक सिध्द होते है। लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि ऐसे अचानक से आचार्य चाणक्य कहां चले गये? अगर वह मृत्यु को प्राप्त हुए, तो उनकी मृत्यु कैसे हुई होगी? अगर आप भी इन सब बातों से अनजान है, तो चलिए जानते है इसके बारे में.... पहली कहानी के अनुसार शायद आचार्य चाणक्य ने तब तक अन्न और जल का त्याग किया था, जब तक मृत्यु नहीं आई। परंतु दूसरी कहानी के अनुसार वे किसी दुश्मन के षड्यंत्र का शिकार हुए थे, जिसकी वजह से उनकी मौत हुई। लेकिन दोनों में से कौन सी कहानी सत्य है इस बात को शोधकर्ता खोज पाने में असमर्थ हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार एक आम से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को आचार्य चाणक्य की सलाह ने सम्राट बनाया। मौर्य वंश का राजा बनाया, एक बड़ा साम्राज्य उसके हाथों में सौंपा और उसका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखवा दिया। आचार्य चाणक्य की सीख से चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश को एक नया रूप दिया, इस वंश को दुनिया के शक्तिशाली वंश के रूप में प्रकट किया और खुद को एक महान राजा की छवि प्रदान की। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा बिंदुसार ने भी पिता चंद्रगुप्त मौर्य की तरह आचार्य के सिखाए कदमों पर चलना सीखा। चंद्रगुप्त मौर्य की तरह ही आचार्य ने बिंदुसार को भी एक सफल राजा होने का पाठ पढ़ाया। सब कुछ सही चल रहा था, आचार्य के अनुशासन तले राजा बिंदुसार अपनी प्रजा को पूर्ण रूप से सुखी रखने में सफल थे, लेकिन दूसरी ओर कोई था, जिसे आचार्य की राजा के प्रति इतनी करीबी पसंद नहीं थी। वह था सुबंधु, राजा बिंदुसार का मंत्री जो कुछ भी करके आचार्य चाणक्य को राजा से दूर कर देना चाहता था। इसके लिए उसने कई षड्यंत्र रचे, उसे राजा को आचार्य चाणक्य के विरुद्ध करने के विभिन्न प्रयास किए, जिसमें से एक था राजा के मन में यह गलतफ़हमी उत्पन्न कराना कि उनकी माता की मृत्यु का कारण कोई और नहीं वरन स्वयं आचार्य चाणक्य ही हैं। ऐसा करने में सुबंधु कुछ मायनों में सफल भी हुए, धीरे-धीरे राजा और आचार्य में दूरियां बनने लगीं।यह दूरियां इतनी बढ़ गईं कि आचार्य सम्राट बिंदुसार को कुछ भी समझा सकने में असमर्थ थे। अंतत: उन्होंने महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया और एक दिन वे चुपचाप महल से निकल गए। उनके जाने के बाद जिस दाई ने राजा बिंदुसार की माता जी का ख्याल रखा था उन्होंने उनकी मृत्यु का राज सबको बताया।उस दाई के अनुसार जब सम्राट चंद्रगुप्त को आचार्य एक अच्छे राजा होने की तालीम दे रहे थे तब वे सम्राट के खाने में रोज़ाना थोड़ा थोड़ा विष मिलाते थे ताकि वे विष को ग्रहण करने के आदी हो जाएं। बैसाखी 2018ः सिक्ख धर्म के लोग इस पर्व को नये साल के रूप में मनाते हैं पहली बार जा रहे वैष्णों देवी, तो इन बातों का जान लेना बहुत जरूरी है आज भी इस जगह पर माता सीता की मौजूदगी के सक्ष्य निर्मित हैं एक अद्भुत मंदिर जहां हवन में किया जाता है मिर्ची का उपयोग