संभल-अलीगढ़-वाराणसी के बाद अब द्वारका में मिला 50 साल से बंद पड़ा मंदिर, सुलेमान-गफ्फार ने किया था कब्जा..!

अहमदाबाद: हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के संभल, वाराणसी, और अलीगढ़ के बाद गुजरात के द्वारका में भी एक ऐसा मंदिर फिर से खुला है, जो लंबे समय से बंद पड़ा था। द्वारका जिले के खंभालिया इलाके में स्थित माँ संतोषी का मंदिर लगभग 50 वर्षों से बंद था। इसका कारण यह था कि हनीफ, सुलेमान, गफ्फार, अब्बास और उमर जैसे आरोपियों ने मंदिर की ओर जाने वाली सड़क को ब्लॉक कर दिया था।  

रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर के पुजारी के परिवार की शिकायत पर पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए FIR दर्ज की। जांच में पता चला कि आरोपियों ने फर्जी दस्तावेज तैयार करके सरकारी जमीन पर कब्जा किया था। जिला पुलिस प्रमुख नितेश पांडे के निर्देश पर 18 दिसंबर को अवैध अतिक्रमण हटा दिया गया, और हिंदू समुदाय को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी गई। पुलिस ने कार्रवाई के दौरान पांच में से तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, जबकि दो की मौत हो चुकी है।  

गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने इसे लेकर कहा कि , "50 साल पुराने संतोषी माता मंदिर को अवरुद्ध कर दिया गया था। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और अतिक्रमण हटाकर मंदिर को फिर से खोला।" उल्लेखनीय है कि, हाल के घटनाक्रमों ने एक गहरी और चिंताजनक समस्या को उजागर किया है। संभल, अलीगढ़ और वाराणसी जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में कई मंदिर बंद या उजाड़ पड़े हैं। इनमें से कई मंदिरों की देव प्रतिमाएं टूटी हुई मिली हैं। सवाल उठता है कि अगर यही स्थिति किसी मस्जिद की होती, तो क्या अब तक चुप्पी रहती? यह अंतर क्यों है? क्या बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की आस्था का सम्मान नहीं किया जाता?  

इतिहास और वर्तमान घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि क्या इस्लामिक कट्टरपंथ मूर्ति पूजा को खत्म करने की मंशा रखता है? इस्लाम में मूर्ति पूजा को पाप मानने का हवाला देकर क्या कुछ अतिवादी तत्व धार्मिक सहिष्णुता पर हमला कर रहे हैं?  इतिहास हमें बताता है कि मोहम्मद गौरी, महमूद ग़ज़नी, बाबर, औरंगज़ेब जैसे इस्लामी आक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों और मूर्तियों को ध्वस्त किया। यहां तक कि हाल ही में, 2001 में, तालिबान ने अफगानिस्तान में बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को विस्फोटकों से उड़ा दिया। क्या यह इस्लामी कट्टरपंथ का ही एक रूप नहीं है, जहाँ अन्य समुदाय के धर्मस्थल तोड़ने को पुण्य का काम माना जाता है?  

ताजा हाल हम बांग्लादेश का देख ही रहे हैं, जहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मस्थलों को निशाना बनाना जारी है। मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, मूर्तियों को अपवित्र किया जा रहा है, और पूजा स्थलों पर हमले किए जा रहे हैं।  क्या यह घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि इस्लामी कट्टरपंथ किसी अन्य समुदाय को शांति से जीने की इजाजत नहीं देता? क्या यह उसी सोच का विस्तार है, जिसके तहत मुगलों ने गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर (जिन्दा रहने के लिए टैक्स) लगाया था?  

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में, जहां सभी धर्मों के प्रति समानता की बात की जाती है, बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की आस्था का यह अपमान क्यों हो रहा है? यह सवाल अब सिर्फ हिंदू समाज का नहीं, बल्कि पूरे देश की धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता के भविष्य का है।

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