कश्मीर में एजेंसियां करवा रही आतंकी हमले..! क्या भारत पर ही ठीकरा फोड़ रहे फारूक?

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में हाल के दिनों में आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। बीते 24 घंटों में ही तीन हमले हो चुके हैं, जिसमें पहले बडगाम और बांदीपुरा में फायरिंग की गई, और अब श्रीनगर में फायरिंग की खबर है। बढ़ते आतंक के इस माहौल पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने इसे एक गहरी साजिश करार दिया है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि ये हमले एक संकट पैदा करने की कोशिश हैं और इनका उद्देश्य कश्मीर को अस्थिर करना हो सकता है। उन्होंने कहा कि इन हमलों के पीछे कोई एजेंसी तो नहीं है ? 

फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि हमलावरों को मारने के बजाय उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि इन हमलों के पीछे कौन है। उन्होंने सवाल उठाया कि ये आतंकी घटनाएं अभी क्यों हो रही हैं और पहले क्यों शांत थीं। उन्होंने यह भी इशारा किया कि कहीं यह सरकार को अस्थिर करने की साजिश तो नहीं है। उन्होंने बडगाम में मजदूरों पर हुए हमले का उल्लेख करते हुए जोर दिया कि जांच होनी चाहिए और यह पता चलना चाहिए कि ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं।

फारूक अब्दुल्ला के इन बयानों से यह आभास होता है कि उनका निशाना अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार की ओर है। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर भारतीय या पाकिस्तानी एजेंसियों का नाम नहीं लिया है, लेकिन उनके बयान इस ओर इशारा कर सकते हैं कि वह वर्तमान केंद्र सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। अक्सर विपक्षी दल केंद्र पर ऐसे आरोप लगाते हैं कि वह जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता फैलाने वाली घटनाओं में शामिल हो सकती है।

वहीं, यह भी सच है कि फारूक अब्दुल्ला और उनकी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में ऐसे वादे किए थे, जो अलगाववादियों को खुश कर सकते थे, जैसे अनुच्छेद 370 और 35A की बहाली की बात करना और आतंकवाद के आरोपों में जेल में बंद कैदियों की मदद करना। ये वही मुद्दे हैं जिन्हें आतंकी संगठनों ने समर्थन दिया था, और चुनावों के दौरान अपेक्षाकृत शांत रहे, लेकिन अब वे फिर से सक्रिय हो गए हैं।

फारूक अब्दुल्ला के बयानों के अलावा, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा जैसे विपक्षी नेताओं ने भी चुनावी रैलियों में "कश्मीरी बनाम बाहरी" का मुद्दा उठाया था, जिससे इन घटनाओं के लिए एक और संभावित कारण का संकेत मिलता है। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि स्थानीय लोगों की मदद के बिना आतंकी इतनी आसानी से हमले नहीं कर सकते। मजहब या कश्मीर की स्वतंत्रता के नाम पर स्थानीय समर्थन मिलने से आतंकियों को छिपने और हमले की योजना बनाने में सहूलियत होती है। अगर स्थानीय लोग आतंकियों का समर्थन बंद कर दें और सेना को उनकी जानकारी दें, तो आतंकवाद को समाप्त करना संभव हो सकता है। 

इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक बयानबाजी और स्थानीय समर्थन आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले कारकों में शामिल हैं। आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए स्थानीय समुदाय की सक्रिय भूमिका और जागरूकता बेहद जरूरी है।

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