लखनऊ: अखिलेश यादव और कांग्रेस के बीच खटास एक बार फिर सामने आ रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के साथ गठबंधन और वोट बैंक साझा करने से समाजवादी पार्टी को होने वाले नुकसान की आशंका अब सार्वजनिक रूप से जाहिर हो रही है। अखिलेश यादव पहले भी कांग्रेस से गठबंधन तोड़ चुके हैं, और इस बार भी संकेत कुछ ऐसा ही दे रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पिछली बार कारण राहुल गांधी के व्यवहार से जुड़ा था, जबकि इस बार वोट बैंक की लड़ाई इसकी वजह बन रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी मुख्यतः यादव, दलित और मुस्लिम वोट पर निर्भर करती है। लेकिन यही वोट बैंक कांग्रेस का भी लक्ष्य है। ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच खींचतान स्वाभाविक है। कांग्रेस अपने पुराने मुस्लिम-दलित वोट बैंक को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जिससे अखिलेश यादव को नुकसान हो सकता है। दलित और मुस्लिम वोट के लिए कांग्रेस की आक्रामक रणनीति अखिलेश के लिए चिंता का विषय है। इस खींचतान के बीच अखिलेश यादव ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक में प्रमोट कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इसके जरिए वे राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति में चुनौती देना चाहते हैं। ममता बनर्जी को आगे बढ़ाने से अखिलेश, कांग्रेस पर दबाव बनाने के साथ-साथ राहुल गांधी की राह में रोड़ा अटकाना चाहते हैं। हालांकि, इससे यूपी में कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को रोक पाना मुश्किल होगा। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में अब तक कांग्रेस से दो बार और मायावती की बीएसपी से एक बार गठबंधन किया है। मुलायम सिंह यादव हमेशा ऐसे गठबंधनों के खिलाफ रहे, लेकिन अखिलेश ने ये निर्णय लिए। बीएसपी के साथ गठबंधन के नतीजे खास फायदेमंद नहीं रहे, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा सिर्फ 5 सीटें जीत पाई, और डिंपल यादव भी हार गईं। वहीं, कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर भी दोनों बार नतीजे सकारात्मक नहीं रहे। हाल ही में करहल उपचुनाव में डिंपल यादव की सक्रियता और प्रशंसा इस बात का संकेत देती है कि अखिलेश यूपी में उन्हें स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। डिंपल यादव को फ्रंटफुट पर लाने से सपा को नई धार मिलने की उम्मीद हो सकती है। वैसे देखा जाए तो, इस खींचतान में अखिलेश यादव को आजम खान की नाराजगी भी भारी पड़ रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद मुस्लिम विधायकों ने आजम की अनदेखी के बहाने अखिलेश को घेरना शुरू किया था। इसके बाद आजम की चिट्ठी ने इस आग में घी डालने का काम किया। दिलचस्प बात यह है कि आजम की चिट्ठी में कांग्रेस को भी निशाना बनाया गया, लेकिन राहुल गांधी के प्रति उनका रुख अपेक्षाकृत नरम नजर आया। वहीं, राहुल गांधी ने दलित और मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने के लिए हाल ही में हाथरस और संभल का दौरा किया। कांग्रेस का यह रुख अखिलेश यादव को परेशान कर रहा है। राहुल की सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति भी विफल रही, क्योंकि राम मंदिर के उद्घाटन पर उनकी पार्टी ने बहिष्कार का निर्णय लिया। अखिलेश यादव के ममता बनर्जी को प्रमोट करने का प्रयास यह संकेत देता है कि वे राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका तलाश रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रभाव कम होगा? यदि अखिलेश राहुल गांधी से गठबंधन तोड़ते हैं, तो क्या वे अकेले दम पर बीजेपी को हराने में सक्षम होंगे? समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन फायदे का सौदा भले न हो, लेकिन नुकसानदायक भी नहीं कहा जा सकता। अखिलेश को यह समझना होगा कि यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस का साथ ज्यादा जरूरी है। ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक में प्रमोट करना उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इससे यूपी की चुनावी जमीन पर कोई बड़ा असर पड़ने की संभावना कम है। फिलहाल, अखिलेश का यह कदम राहुल गांधी को चुनौती देने से ज्यादा उनके और कांग्रेस के बीच बढ़ते मतभेदों को उजागर कर रहा है, जो दोनों पार्टियों के लिए हानिकारक है। अडानी-मोदी, भाजपा-RSS और संविधान..! प्रियंका के पहले संसदीय भाषण में दिखी भाई राहुल की झलक संगमनगरी प्रयागराज पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी, की 5500 करोड़ के प्रोजेक्ट्स की शुरुआत करोड़ों कैश मिले, शिक्षक-भर्ती घोटाला हुआ..! पर पार्थ चटर्जी को 'सुप्रीम कोर्ट' ने दी जमानत