जब से बिहार सरकार ने अपने राज्य में शराब बंदी लागू की है, तब से देश के अन्य राज्यों में भी शराब बंदी की मांग जोर पकड़ने लगी है, जिससे मध्य प्रदेश भी अछूता नहीं है.यहां भी शराब के सेवन से होने वाली हानियों के प्रति आई जागृति का ही परिणाम है कि शहर से लेकर सुदूर गांवों तक इसका मुखर विरोध होने लगा है जिसमें महिलाओं की भूमिका प्रमुख है. हालाँकि राज्य की शिवराज सरकार भी प्रदेश में शराब बंदी लागू करना चाहती है. एक ओर शराब से होने वाली अकूत आय और दूसरी तरफ सामाजिक मांग के संदर्भ में सरकार पशोपेश में है. वह शराब बिक्री से होने वाली आय का मोह भी नहीं छोड़ पा रही है, वहीं दूसरी ओर जनता को यह भी दिखाना चाहती है कि वह इस सामाजिक बुराई में जनता के साथ है.इसी अनिश्चय की स्थिति ने सरकार की गति सांप -छछूंदर जैसी कर दी है, जो न तो उगला जा रहा है और न निगला जा रहा है. यही कारण है कि दो राहे पर खड़ी शिवराज सरकार मध्य प्रदेश को मद्य से मुक्ति नहीं दिला पा रही है. कभी -कभी तो ऐसा लगता है कि शराब बंदी को लेकर सरकार पाखंड कर रही है. जब से इस नए वित्तीय वर्ष में शराब के ठेकों का आवंटन होने के बाद जब दुकानें खोली जाने की जानकारी जनता को लगने लगी तो विरोध के स्वर उभरने लगे. गांवों, शहरों और इंदौर जैसे महानगर में भी विरोध प्रदर्शन, अहिंसक आंदोलन और धरने जैसे मामले सामने आने लगे. हर बार की तरह इस बार भी शराब दुकानों के वास्तविकआवंटन के बजाय अन्यत्र स्थानों पर खोले जाने की घटनाओ ने विरोध को ज्यादा हवा दे दी. मसलन शराब की दुकान का आवंटन तो एम जी रोड़ के लिए किया गया लेकिन उसे पास की गली या चौराहे पर खोल दिया गया. ऐसी विसंगतिपूर्ण दुकानों ने प्रशासन को भी मुश्किल में डाल दिया. हाल ही में इंदौर के कालानी नगर में तो महिलाओं ने विरोध का अनूठा तरीका अपनाया. हाल ही में खोली गई शराब दुकान के सामने महिलाओं ने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया. आखिर में जिला प्रशासन को इस दुकान को उस स्थान से हटाने की घोषणा करनी पड़ी.इस छोटी सी गलती ने कानून और व्यवस्था बिगड़ने जैसे हालात निर्मित कर दिए. हालांकि राज्य व्यापी विरोध के बाद सरकार ने स्कूलों, कॉलेजों और धार्मिक स्थलों के पास दुकानें खोलने को प्रतिबंधित कर दिया. बता दें कि सरकार ने राज्य में बहने वाली नर्मदा नदी तट के 5 किमी के दायरे में नई दुकानें नहीं खोलने की घोषणा पूर्व में ही कर चुकी थी. लेकिन इसकी वास्तविक स्थिति का पता लगाया जाना चाहिए कि नर्मदा तटीय जिन इलाकों में शराब की बिक्री प्रतिबंधित की है, वहां अवैध शराब की बिक्री तो नहीं हो रही है.यदि ऐसा हो रहा है तो उद्देश्य सफल नहीं हुआ माना जा सकता है. एक बात और सरकार की ऊहापोह की स्थिति ने शराब के ठेकेदारों को मुश्किल में डाल दिया है. जैसा कि सभी को पता है कि आबकारी विभाग द्वारा शराब के जो ठेके नीलामी में आवंटित किए जाते हैं उनकी हर वर्ष नीलामी की बोली ऊँची ही जाती है जो करोड़ों में होती है. शराब कारोबारी संगठित होकर इन नीलामियों को अपने नाम करवाते है.जिसमें करोड़ों का निवेश करना पड़ता है.बाद में अधिकांश जगह उप ठेकेदारों को इन दुकानों का संचालन सौंप कर इन्हें संचालित किया जाता है.लेकिन इस साल जनता के द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध किए जाने से शराब की दुकानें आवंटित होने के करीब एक माह बाद भी नहीं खुल पा रही है. इससे ठेकेदारों को रोजाना घाटा हो रहा है. ऐसी स्थिति में आक्रोशित ठेकेदारों ने सरकार से ठेके निरस्त कर उनके द्वारा जमा की अग्रिम राशि जो करोड़ों में है, उसे वापस करने की मांग कर दी. लेकिन सरकार न तो उनकी राशि वापस कर रही है और न जनता शराब की दुकानें खोलने दे रही है.ऐसी असमंजस की स्थिति में सभी शराब ठेकेदार अपने आप को असहाय पा रहे हैं. इसीसे सरकार को अनिश्चय की मनोदशा का पता चल जाता है कि वह न तो शराब बंदी कर पा रही है और न शराब दुकानों को ठीक से चला पा रही है.इससे सरकार की छवि न तो शराब व्यवसायियों की नजर में बन पा रही है और न जनता की नजर में उठ पा रही है.इससे शराब बंदी का यह मुद्दा एक मजाक बनकर रह गया है.इस कारण सरकार की स्थिति हास्यास्पद हो रही है.शायद ऐसी ही स्थिति के लिए किसी ने ठीक ही कहा है कि न ख़ुदा मिला, न विसाले सनम. यह भी देखें