नई दिल्ली : खबर पढ़कर आपका चौंकना स्वाभाविक है, क्योंकि आमतौर पर कोई पक्षकार निचली अदालत के फैसले से असंतुष्ट होकर उच्च अदालत में अपील करता है. लेकिन इस मामले तो खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देश की शीर्ष अदालत में अपने ही फैसले को चुनौती दी है. आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट पारिवारिक अदालतों की देखरेख से जुड़े मामले में अपने ही फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया है.मुख्य मुद्दा उत्तर प्रदेश में पारिवारिक अदालतों की देखरेख की जिम्मेदारी हाईकोर्ट को दिए जाने के विरोधाभासी नियमों को लेकर है. इसी बात को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है. इस मामले में पेंच यहां फंसा है कि उत्तर प्रदेश पारिवारिक अदालत नियम, 1995 के नियम 36 के अनुसार सभी पारिवारिक अदालतें हाईकोर्ट की देखरेख में काम करेंगी ,जबकि नियम 58 के अनुसार पारिवारिक अदालत के जज जिला जज की प्रशासनिक एवं अनुशासनात्मक देखरेख में रहेंगे इन पर हाईकोर्ट का पूर्ण नियंत्रण रहेगा. गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा एसोसिएशन के पक्ष में फैसला देकर मामले को हाईकोर्ट की प्रशासनिक इकाई के पास भेज दिया था, ताकि नियम 58 के लिए उपयुक्त संशोधन किया जा सके. इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर भानुमति की पीठ ने प्रतिवादी और उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा एसोसिएशन को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए है. हाईकोर्ट की ओर से जगजीत सिंह छाबड़ा और यशवर्धन मामले की पैरवी कर रहे हैं. यह भी देखें इलाहाबाद कोर्ट ने दी 63 बच्चों की मौत के आरोपी डॉ कफील को जमानत यूपी: बर्खास्त कॉन्स्टेबलों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी, जल्द होगी बहाली