हर साल आने वाले आमलकी एकादशी इस साल 17 मार्च को मनाई जाने वाली है. ऐसे में इस दिन आंवले के पेड़ के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और इसी दिन रंगभरनी एकादशी भी मनाई जाती है, जिसमें भगवान शिव को रंग लगाकर होली की तैयारियों की शुरुआत करते हैं. आप सभी को बता दें कि इस कारण से यह दिन शिव और विष्णु भक्तों दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं आमलकी एकादशी की वह व्रत कथा जो बहुत कम लोग जानते हैं. इनमे एक कथा शिव भगवान से जुडी है तो दूसरी विष्णु भगवान से. आइए जानते हैं. आमलकी एकादशी व्रत कथा: सृष्टि की शुरुआत में जब परमपिता ब्रह्मा जी की नाभि से भगवान विष्णु की उत्पत्ति हुई तो ब्रह्मा जी खुद इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हुए और उनके मन में एक सवाल कौंधा कि आखिरकार ये कौन है जिसकी उत्पत्ति उन्हीं की नाभि से हुई है. अपने इस सवाल का जवाब पाने के लिए ब्रह्मा जी ने कई सालों तक परमब्रह्म की कठोर तपस्या की. इसके बाद भगवान विष्णु प्रकट हुए और ब्रह्मा जी से आंखें खोल वरदान मांगने को कहा. विष्णु जी को सामने देखकर ब्रह्मा जी की आंखों से खुशी के आंसू जमीन पर गिर गए. जहां उनके आंसू गिरे थे वहां आंवले का पेड़ उग आया. इसे देखकर मुस्कुराकर भगवान विष्णु ने कहा कि चूंकि इस पेड़ की उत्पत्ति आपके आंसुओं से हुई है इसलिए ये पेड़ और इसके फल मुझे हमेशा से पसंद होंगे. इस दिन जो भक्त भी सच्चे मन से आंवले के पेड़ की पूजा करेगा उसके सारे बुरे कर्मों का नाश होगा और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी. रंगभरनी एकादशी व्रत कथा: शिवपुराण में ऐसा उल्लेख है कि इस दिन देवी पार्वती का गौना हुआ था और वे शिव के पास आ गई थीं. देवी पार्वती के आने पर शिवभक्तों ने रंग खेलकर अपनी खुशी जताई थी. यही कारण है कि इसे रंगभरनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन काशी में भगवान शिव का विशेष श्रृंगार होता है और भक्त एक-दूसरे को गुलाल लगाकर खुशियां मनाते हैं. यहाँ जानिए आमलकी एकादशी के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि 17 मार्च को है आमलकी एकादशी, जानिए क्यों रखते हैं व्रत होली खेलने से पहले जरूर जपे राशिनुसार मंत्र