भारत के साथ दुनिया के कई देश वायुप्रदुषण के शिकार हो रहे है. वायु प्रदूषण हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. यह तो अभी तक सभी का मालूम था. अब शोधकर्ताओं के हालिया अध्ययन से पता चला है कि यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर की चपेट में आने वालों बच्चों में सिजोफ्रेनिया के बढ़ने का खतरा अधिक होता है. सिजोफ्रेनिया एक तरह की मानसिक बीमारी है, जो किसी व्यक्ति की सोचने-समझने, एहसास करने और व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रदूषण संबंधी आंकड़े और आइपीएसवाइसीएच के आनुवंशिक आंकड़ों के संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि प्रदूषण का स्तर जितना अधिक होता है, सिजोफ्रेनिया का खतरा भी उतना ही अधिक होता है. पाक के क्वेटा में बम ब्लास्ट का शिकार हुए लोग, 2 की मौत 14 गंभीर रूप से घायल आपकी जानकारी के लिए बता दे कि वायु प्रदूषण के घनत्व में रोजाना 10 मिली्रग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी से सिजोफ्रेनिया का खतरा लगभग 20 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस अध्ययन के वरिष्ठ शोधकर्ता हेनरिते थिस्तेद हॉर्सदल ने बताया,'वैसे बच्चे जो रोजाना लगभग 25 मिलीग्राम प्रति घनमीटर से अधिक वायु प्रदूषण वाले पर्यावरण में रहते हैं, उनमें सिजोफ्रेनिया होने की आशंका 60 फीसदी तक अधिक होती है.' यूक्रेन में दर्दनाक हादसा: विमान दुर्घटनाग्रस्त, मरने वालों की संख्या 170 पहुंची प्रदुषण को लेकर यह अध्ययन जेएएमए नेटवर्क ओपन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों के आधार पर बताया कि किसी व्यक्ति के पूरे जीवन में सिजोफ्रेनिया होने की आशंका लगभग दो फीसदी होती है. इसका मतलब है कि हर 100 में से दो में इसके होने की गुंजाइश बनी रहती है. वायु प्रदूषण के निम्नतम स्तर की चपेट में आने वालों में सिजोफ्रेनिया का खतरा दो फीसदी तक होता है, जबकि प्रदूषण के उच्चतम स्तर की चपेट में आने वालों में यह आंकड़ा लगभग तीन फीसदी तक हो जाता है. डोनाल्ड ट्रंप ने जनरल कासिम को बोला "राक्षस, कीमती अंगूठी देख उड़ा दिए परखच्चे नेतन्याहू ने ईरान पर किया पलटवार, कहा-यदि इजराइल पर हमला करने की गुस्‍ताखी की तो... साइकिलिस्ट रोनाल्डो सिंह का कमाल, 1 नम्बर पर बनाई अपनी जगह