दुनिया के ताकतवर देशों में शामिल अमेरिका ने पिछले साल एच-1बी वीजा के लिए दाखिल किए गए हर पांचवें आवेदन को खारिज कर दिया. इससे भारतीय आइटी कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुई. इन कंपनियों के आवेदनों को अस्वीकार करने की दर सबसे ज्यादा रही है. यह वीजा भारतीय पेशेवरों में खासा लोकप्रिय है. 'मैंने हफ़्तों से नहीं छुआ अपना चेहरा', जानिए डोनाल्ड ट्रम्प ने क्यों कहा ऐसा ? इस मामले को लेकर एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 की तुलना में 2019 में आवेदनों को खारिज किए जाने की दर 24 से घटकर 21 फीसद रह गई है. सरकारी आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर इस संगठन ने बताया कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), विप्रो और इंफोसिस जैसी भारतीय आइटी कंपनियों के आवेदनों को खारिज किए जाने की दर सबसे ज्यादा रही है. जबकि अमेजन और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियों के लिए यह दर निम्न पाई गई. यानी भारतीय कंपनियों की तुलना में इनके आवेदन बेहद कम खारिज हुए. टीसीएस के आवेदनों को खारिज करने की दर 31 फीसद रही। जबकि इंफोसिस, विप्रो और टेक महिंद्रा के लिए यह दर कमश: 31 फीसद, 47 फीसद और 37 फीसद थी। दूसरी तरफ वर्ष 2019 में अमेजन और गूगल के वीजा आवेदनों को अस्वीकार करने की दर महज चार फीसद थी. इमरान ने नवाज़ की हेल्थ रिपोर्ट को नकली, PML-N बोली - पीएम पद से इस्तीफा दो इसके अलावा फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'उम्मीद है कि इस साल ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा के लिए नए नियम जारी कर सकता है. इससे अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों के लिए उच्च कुशल विदेशी नागरिकों को नौकरी पर रखना और कठिन हो जाएगा' वही एच-1बी वीजा भारतीय आइटी पेशेवरों में काफी लोकप्रिय है. इस वीजा के आधार पर अमेरिकी कंपनियां विदेशियों को नौकरी पर रखती हैं. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद इस वीजा के नियमों को सख्त कर दिया गया है. अमेरिका : इस चुनाव में भारतीय उम्मीदवारों ने जमाई धाक कोरोनावायरस से बच्चे हुए सुरक्षित, इटली सरकार ने किया ऐसा काम 80 देशों में फैला कोरोनावायरस, स्विटजरलैंड में हुई पहली मौत