नई दिल्ली: दिल्ली के नौकरशाहों की पोस्टिंग को नियंत्रित करने के लिए केंद्र को सशक्त बनाने वाला एक विधेयक सोमवार (31 जुलाई) को लोकसभा में पेश किए जाने की संभावना है। सूत्रों ने इस बारे में जानकारी दी है. सूत्रों का कहना है कि यह कानून, जिसका उद्देश्य उस अध्यादेश को बदलना है, जिसने अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच बड़े पैमाने पर टकराव पैदा कर दिया है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किया जाएगा। हालांकि इस कानून के लोकसभा में आसानी से पारित होने की उम्मीद है, लेकिन इसे राज्यसभा में चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जहां सरकार के पास बहुमत का अभाव है। केंद्रीय कैबिनेट ने कल इस विधेयक को संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी है। दिल्ली अध्यादेश मुद्दे पर आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार को अधिकांश विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है, जो संयुक्त मोर्चा INDIA के तहत एकजुट हुए हैं। नियमों के अनुसार, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है, तो सरकार द्वारा अध्यादेश लाया जाता है, लेकिन सत्र शुरू होने के छह महीने के भीतर इसे विधायिका द्वारा पारित किया जाना जरूरी होता है। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने मई में दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस से संबंधित सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाओं पर उसका नियंत्रण होगा। केंद्र ने अब फैसले की समीक्षा की मांग की है. बड़ी अदालत के फैसले के तुरंत बाद केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल सरकार ने अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस बात की जांच करेगी कि क्या संसद दिल्ली सरकार से सेवाओं पर नियंत्रण छीनने के लिए कानून बनाकर "शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त" कर सकती है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा पारित आदेश में कहा गया, "हम तदनुसार निम्नलिखित प्रश्नों को एक संवैधानिक पीठ को भेजते हैं: (i) अनुच्छेद 239-एए (7) के तहत कानून बनाने की संसद की शक्ति की रूपरेखा क्या है; और (ii) क्या अनुच्छेद 239-एए (7) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटीडी) के लिए शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त कर सकती है।" क्या है दिल्ली का अध्यादेश विवाद:- बता दें कि, 11 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित सेवा मामलों से जुड़े सभी कामकाज पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल बताया था। वहीं, जमीन, पुलिस, और पब्लिक ऑर्डर के अलावा सभी विभागों के अफसरों पर केंद्र सरकार को कंट्रोल दिया गया था। ये पॉवर मिलते ही, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सचिवालय में स्पेशल सेक्रेट्री विजिलेंस के आधिकारिक चैंबर 403 और 404 को सील करने का फरमान सुना दिया और विजिलेंस अधिकारी राजशेखर को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन, केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई और फिर राजशेखर को अपना पद वापस मिल गया। इसके बाद पता चला कि, दिल्ली शराब घोटाला और सीएम केजरीवाल के बंगले पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की जांच राजशेखर ही कर रहे थे। राजशेखर को पद से हटाए जाने के बाद उनके दफ्तर में रखी फाइलों से छेड़छाड़ किए जाने की बात भी सामने आई थी। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे राजशेखर के दफ्तर में आधी रात को 2-3 लोग फाइलें खंगालते हुए देखे गए थे। ऐसे में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन द्वारा कहा जा रहा है कि, केजरीवाल इस अध्यादेश का विरोध दिल्ली की जनता के लिए नहीं, बल्कि खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। अजय माकन का तो यहाँ तक कहना है कि, अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ देना यानी नेहरू, आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे लोगों के विचारों का विरोध करना है, जिन्होंने कहा था कि, दिल्ली की शक्तियां केंद्र के हाथों में ही होनी चाहिए। माकन तर्क देते हैं कि, कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी वह शक्तियां नहीं मिली थी, जो केजरीवाल मांग रहे हैं। साथ ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से केजरीवाल का साथ न देने की अपील की है। हालाँकि, भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता बनाए रखने और 2024 के चुनाव में AAP का साथ लेने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने AAP की मांग स्वीकार कर ली है और अब कांग्रेस संसद में नेहरू-आंबेडकर, पटेल आदि के विचारों के खिलाफ जाकर AAP का साथ देगी। 'आप ASI पर भरोसा नहीं कर रहे, तो कोर्ट पर कैसे करोगे..', ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष पर भड़की हाई कोर्ट दिल्ली में 2 मस्जिदों के खिलाफ कार्रवाई पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक, रेलवे ने अतिक्रमण बताकर जारी किया था नोटिस 'मणिपुर में आगे से कोई हिंसा न हो..', राज्य सरकार को NHRC का अल्टीमेटम, मांगी अब तक की स्टेटस रिपोर्ट