सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी के सरताज उस्ताद अमजद अली खान का आज 73वां जन्मदिन है. अमजद अली खान का जन्म 9 अक्टूबर 1945 को ग्वालियर में हुआ था. उन्हें तहजीब और मौसिकी की मिसाल भी कहा जाता है. उत्साद अमजद अली खान को सरोद बजाने में महारत हासिल हुई है. जो भी उन्हें सुनता था वो उन्हें सुनता ही रह जाता था. बचपन से ही अमजद अली खान ने सरोद बजाना सीखना शुरू कर दिया था और कुछ ही समय में वो इसके सरताज बन गए थे. उनकी इस साज में कुछ ऐसे कशिश थी कि जो भी उन्हें सुनना शुरू करता था वो बस उन्हें सुनते ही जाता था. अमजद अली खान अपनी इस कला के जरिए सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. सेनिया बंगश घराने के लोग ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को को भारत लाए थे और फिर उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति के अनुकूल कर रबाब से सरोद में परिवर्तित कर दिया था. जब उस्ताद अमजद अली खान 12 वर्ष के थे तब उन्होंने एकल प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था. उस समय तो वो छोटे बालक ही थे और उन्होंने फिर भी इतना शानदार प्रदर्शन देकर सभी बड़े से बड़े संगीतज्ञ को भी हैरान कर दिया था. इसके बाद उस्ताद अमजद अली खान ने धीरे-धीरे सरोद बजाने में दक्षता हासिल की और वो इसके सरताज बन गए. उस्ताद अमजद अली खान ने बच्चे के लिए भी गायन और वाद्य संगीत की रचना की थी. उनका कहना था कि उन्हें अपनी प्रस्तुति के लिए कोई पैसा या अवार्ड नहीं चाहिए बल्कि वो तो बस अपने संगीत की प्रस्तुति देने की भीख माँगा करते थे. अमजद ने कई तरह की रागों की रचना की हैं जिनमे शिवांजली, हरिप्रिया कानदा, किरण रंजनी, सुहाग भैरव, ललित ध्वनि, श्याम श्री और जवाहर मंजरी मुख्य रूप से शामिल हैं. उत्साद अमजद अली खान ने इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की याद में राग प्रियदर्शनी और राग कमलश्री की भी रचना की थी. खबरें और भी.... नाना पाटेकर ने अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी सफाई दशहरे पर हवाई यात्रा हुई सस्ती, घूमने के लिए जाएं मात्र 999 रूपए में देश की सुरक्षा में बड़ी चूक, ब्रह्मोस यूनिट में काम कर रहा था ISI एजेंट