वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में कई बड़े फैसले ले रहे हैं। इनमें सबसे अधिक चर्चा में है जेल में बंद 1500 कैदियों की सजा माफ करने का उनका फैसला। इनमें चार भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक भी शामिल हैं। राष्ट्रपति बाइडेन ने बयान जारी कर कहा कि अमेरिका "संभावना और दूसरा मौका देने के वादे" पर खड़ा है। राष्ट्रपति के पास विशेषाधिकार है कि वे उन लोगों को क्षमा कर सकें, जिन्होंने अपने किए पर पछतावा किया है और जो समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि विशेष रूप से ड्रग्स से संबंधित मामलों में दोषी पाए गए 39 लोगों की सजा माफ कर दी गई है। साथ ही 1500 कैदियों की सजा को कम करने की प्रक्रिया जारी है। यह अमेरिकी इतिहास में एक दिन में दी गई सबसे बड़ी माफी में से एक है। बाइडेन ने जिन चार भारतीय मूल के अमेरिकियों को क्षमादान दिया है, उनके नाम मीरा सचदेवा, बाबूभाई पटेल, कृष्णा मोटे, और विक्रम दत्ता हैं। उदाहरण के लिए, मीरा सचदेवा को दिसंबर 2012 में धोखाधड़ी का दोषी पाया गया था और 20 साल की सजा सुनाई गई थी। इसके साथ ही उन पर 82 लाख डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था। बाइडेन द्वारा क्षमादान का यह सिलसिला विवादों में तब आ गया, जब उन्होंने अपने बेटे हंटर बाइडेन को भी सजा माफ कर दी। हंटर बाइडेन पर टैक्स चोरी, गैरकानूनी तरीके से हथियार रखने, सरकारी धन का दुरुपयोग और झूठी गवाही देने जैसे गंभीर आरोप लगे थे। इन मामलों में अदालत ने उन्हें दोषी भी पाया था। राष्ट्रपति द्वारा अपने बेटे के अपराधों को माफ करना पद के दुरुपयोग के आरोपों को हवा दे रहा है। जहाँ एक तरफ उन अपराधियों को क्षमा दिया जा रहा है, जिन्होंने अपनी सजा का बड़ा हिस्सा काट लिया है, पश्चाताप दिखाया है और एक नई शुरुआत करने के लिए तैयार हैं, वहीं दूसरी तरफ हंटर बाइडेन को बिना किसी सजा के माफ करना एक अलग ही तस्वीर पेश करता है। क्षमा देना राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसका इस्तेमाल समानता और नैतिकता के आधार पर हो रहा है? जो अपराधी अपने किए पर पछतावा दिखा रहे हैं, उन्हें माफी देना एक मानवीय कदम माना जा सकता है। लेकिन क्या अपने पद का उपयोग कर अपने परिवार को कानूनी दंड से बचाना उचित है? बाइडेन के इस फैसले पर आलोचक इसे पद का दुरुपयोग और नैतिकता का उल्लंघन मान रहे हैं। अमेरिकी जनता यह सवाल कर रही है कि अगर राष्ट्रपति अपने बेटे को कानून से ऊपर रख सकते हैं, तो यह न्याय और लोकतंत्र के लिए कितना उचित है? राष्ट्रपति बाइडेन का यह कदम उनके प्रशासन पर भी सवाल खड़े करता है। यह निर्णय उनके कार्यकाल की समाप्ति से ठीक पहले लिया गया है, जब वे पहले से ही कई विवादों का सामना कर रहे हैं। 'मध्य प्रदेश शासन पर पड़ रहा लाडली बहना-योजना का भार', CM मोहन ने किया स्वीकार बिहार में फिर हुआ पकड़ौआ विवाह!, मचा बवाल 'अब मंदिर-मस्जिद से जुड़ा नया मुकदमा नहीं हो सकेगा दायर', SC ने केंद्र से मांगा-जवाब