योग से ज्यादातर लोग शारीरिक कसरत-कवायद ही समझते हैं, कुछ लोग जो थोड़ी अधिक जानकारी रखते हैं वे प्राणायाम को भी इसमें शामिल कर लेते हैं. लेकिन योग सिर्फ शारीरिक उन्नति का मार्ग ही नहीं बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया भी है. इस पूरी प्रक्रिया के 8 महत्वपूर्ण पड़ाव हैं जिन्हे अष्टांग योग नाम से जाना जाता है, इस प्रक्रिया के जरिये सामान्य इंसान भी दिव्य भाव की तरफ अग्रसर होता है. अष्टांग योग का पहला पड़ाव है, यम, जिसके अंतर्गत 5 बिंदु आते हैं जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह हैं. इसके बाद आता है नियम, ये वो नियम हैं, जिसका साधना पथ पर चलने वाले योगियों को पालन करना होता है. इसमें भी पांच बिंदु हैं, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान. जब इन दोनों पड़ावों से योगी आगे बढ़ जाता है तो तीसरा पड़ाव आता है, जिसके आसन कहते हैं. इसमें योगासनों द्वारा शरीर को साधा जाता है. इसके बाद साँसों को साधने के लिए चौथा पड़ाव आता है, जिसे प्राणायाम कहा जाता है. इस पड़ाव पर योगी साँसों पर नियंत्रण करना सीखता है. इंद्रियों को अंतर्मुखी करना प्रत्याहार योग का पांचवा चरण है. योग मार्ग का साधक जब यम नियम रखकर एक आसन में स्थिर बैठ कर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढकने वाले अज्ञान का अंत होता हैं. इसके बाद छठा चरण आता है धारणा धारणा में चित को स्थिर कण्व के लिए एक स्थान दिया जाता हैं योगी मुख्यतः ह्रदय के बीच में, मष्तिष्क में और सुषुम्ना नाड़ी में विभिन्न चक्रों पर मन की धारणा करता है. धारणा के बाद 7वें चरण ध्यान में योगी प्रत्याहार से इंद्रियों को चित में स्थिर करता हैं व धारणा द्वारा उसे एक स्थान पर बांध लेता है, इसके बाद योगी उस अंतिम सोपान को पा लेता है, जिसे समाधी कहते हैं, आत्मा से जुड़ना, चैतन्य की अवस्था अष्टांगयोग की उच्चतम सोपान समाधि है. योग दिवस: योग का चौथा अंग प्राणायाम योग दिवस: योग का महत्त्व