पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तहसील, तालुका और ज़िला आते हैं, भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही है, भले ही इसे विभिन्न नाम से विभिन्न काल में जाना जाता रहा हो. लेकिन आज के समय में ग्राम पंचायत के सामने अनेक तरह की समस्याएं हैं, जिनके कारण ग्रामीण इलाकों में न्याय व्यवस्था लचर होती जा रही है. कुछ समस्याएं निम्न है:- ग्राम पंचायतों के स्थानीय स्रोत दिनोंदिन समाप्त होते जा रहे हैं और स्थानीय स्रोतों से शुल्कों/करों आदि की वसूली राशि क्रमशः घटती जा रही है पंचायत प्रतिनिधि आय के नए स्रोतों को लागू करने या करों की कड़ाई से वसूली करने के प्रति उदासीन हैं, या किसी तरह का झंझट मोल नहीं लेना चाहते. ग्रामीण विकास, आर्थिक विकास या रचनात्मक कार्यों के प्रति पंचायत प्रतिनिधियों में कोई उत्साह नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक गुटबाजी के कारण और प्रतिनिधियों के स्वार्थपरक मनमानीपूर्ण रवैये के कारण जनता की सहभागिता अपर्याप्त है. पंचायतों में अवांछित एवं गैर-राजनीतिक तथा राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. पंचायतों क अधिकारों का दुरुपयोग हो रहा है और महिला तथा जातिगत आरक्षण व्यवस्थापन्न लाभ पुरुष प्रधान, सम्पन्न एवं धनी वर्ग के लोगों को ही मिल रहा है. यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि किसी भी व्यवस्था की सफलता के लिए जनमानस में शिक्षा का प्रसार-प्रचार कर जागरुकता लाना और उनकी मानसिकता और मनोवृत्ति में परिवर्तन करना जरूरी है, क्योंकि मानसिकता एवं मनोवृत्ति में परिवर्तन ही वह सशक्त माध्यम एवं उपाय है जो सभी समस्याओं का हल है और यह बात पंचायतीराज व्यवस्था के सन्दर्भ में भी उतनी ही प्रासंगिक है. विश्व पुस्तक दिवस 2018 पर ख़ास पृथ्वी दिवस: झुलस रही पृथ्वी, बढ़ रहा खतरा