अपने सदाबहार गीतों से जनता को दीवाना बनाने वाले बॉलीवुड के मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने लगभग 4 दशकों तक सभी के दिलों पर अपना राज चलाया। फिल्म गीतकार आनंद बक्शी का 72 वर्ष की उम्र में वर्ष 2002 में उनका देहांत हो गया। आज आनंद बख्शी साहब की डेथ एनिवर्सिरी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आनंद बख्शी के पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। किशोरावस्था में आनंद टेलीफोन ऑपरेटर बनकर सेना में शामिल हो गए लेकिन बम्बई और सिनेमा दुनिया में आने की ख्वाहिश ने उन्हें इससे जोड़े हुए रखा। बंटवारा हुआ तो बक्शी परिवार शरणार्थी बनकर हिन्दुस्तान में बस गए। जब मायानगरी में कुछ ना हुआ तो आनंद बख्शी ने फिर से सेना ज्वाइन कर ली और कुछ वक़्त तक वहीं काम करते रहे। 3 साल सेना में नौकरी करने के उपरांत उन्होंने तय किया कि उनकी जिंदगी का मकसद बंदूक चलाना नहीं गीत लिखना है। अपने फिल्मी करियर में बख्शी ने 4000 से अधिक गीत लिखे। उन्हें पहली बार गीत लिखने का अवसर 1957 में मिला लेकिन सफलता उनसे दामन चुराती रही। 1963 में एक्टर और निर्देशक राज कपूर ने उन्हें अपनी मूवी 'मेंहदीं लगे मेरे हाथ' के लिए गीत लिखने का मौका दिया। उसके उपरांत सफलता ने कभी आनंद बक्शी का साथ नहीं छोड़ा। आनंद बक्शी के करियर का शुरुआती माइलस्टोन बनी ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’ और ‘कटी पतंग’ जैसी मूवी, जिनके कांधे चढ़कर राजेश खन्ना इंडियन सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने। आनंद बक्शी ने फिल्मकारों की कई पीढ़ियों के साथ कार्य किया। उनकी सबसे बड़ी खूबी ये थी कि समय के साथ उनके गीतों का लहजा परिवर्तित होता रहा। हिमाचल के चंबा में आग ने ढाया कहर, 4 की गई जान बीते 7 दिनों में देश में कोरोना से हालत और भी गंभीर, इतने केस आए सामने राहुल गाँधी ने देशवासियों को दी होली की शुभकामनाएं