अँधेरों से कह दो कहीं और जाएँ

अँधेरों से कह दो , कहीं और जाएँ

मुझे है ख़ुशी को समाना हृदय में

नहीं अब चलेगा , बहाना कोई भी

उजालों का होगा ठिकाना हृदय में

बहुत शूल के दर्द मैंने सहे हैं

कि अब फूल राहों में आने दो मेरे

भटकते रहे हम निशा में अभी तक

मगर अब महकने दो स्वर्णिम सवेरे

नहीं है गवारा खड़े भीड़ में हों

कोई भीड़ मुझ से भी आकर मिले तो

जहाँ प्यार निःस्वार्थ मेरे लिए हो

कहीं कोई मुस्कान ऐसी खिले तो

जरा हम भी हाथों में भरकर ख़ुशी के

चमकते हुए चन्द मोती लुटा लें

गगन से जरा तोड़ कर कुछ सितारे

ये जीवन की राहों को अपनी सजा लें। 

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