इंदौर के नाम दर्ज हुई एक और उपलब्धि, कलेक्टर को राष्ट्रपति से मिला 'भूमि सम्मान प्लेटिनम अवार्ड'

इंदौर: मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर शहर में राजस्व मतलब भू-अभिलेखों के रिकॉडों को संरक्षित किया गया, वहीं उनके आधुनिकीकरण, डिजिटलाइजेशन के चलते इंदौर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी को आज दिल्ली में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित किया गया है। प्लेटिनम सर्टिफिकेट के साथ राष्ट्रपति ने कलेक्टर को भूमि सम्मान दिया। कलेक्टर का कहना है कि इंदौर के राजस्व रिकॉर्ड को सम्पदा पोर्टल से जोडऩे का भी काम किया है तथा भविष्य में जो केन्द्र सरकार यूनिक लैंड पार्सल आईडेंटिफिकेशन नम्बर व्यवस्था आरम्भ करेगी उसमें भी ये डिजिटाइजेशन काम आएगा। 

117 वर्ष पुराने महाराजा होलकर द्वारा बनवाए गए बेशकीमती राजस्व रिकॉर्डों को जहां सहेजने का काम किया गया, वहीं इंदौर के सभी 676 गांवों के राजस्व रिकॉर्डों को भी डिजिटल किया गया। 1584 नक्शा शीटें, जिनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थीं उन्हें लेमिनेट करवाने के साथ उनको डिजिटल करने के लिए स्कैन भी करवाया गया तथा सभी राजस्व रिकॉर्ड अलमारियों में सुरक्षित रिकॉर्ड रूम में रखवा दिए हैं। केवल 17-18 जिले के गांव ऐसे हैं जिनके त्रुटिपूर्ण रिकॉर्ड हैं, उन्हें भी दुरुस्त किया जा रहा है, जिसमें खजराना समेत कुछ जागीरी वाले गांव सम्मिलित हैं। हालांकि खजराना का भी बहुत कुछ रिकॉर्ड व्यवस्थित किया जा चुका है। अब एमपी लैंड रिकॉर्ड के जरिए इन सभी राजस्व रिकॉर्ड को ऑनलाइन भी उपलब्ध करा दिया है। भू-अभिलेखों के डिजिटलाइजेशन एवं  उनको सहेजने का काम मध्यप्रदेश लैंड रिकॉर्ड मुख्यालय ग्वालियर द्वारा कराया जा रहा है तथा यही वजह है कि अब ऑनलाइन जिले, गांव एवं खसरा नंबर डालते ही उससे जुड़ी जानकारी कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है। इतना ही नहीं, आधार कार्ड की भांति केन्द्र सरकार यूनिक लैंड पार्सल आईडेंटीफिकेशन नम्बर भी तैयार करवा रही है। 

इंदौर की लैंड रिकॉर्ड शाखा में पदस्थ अनुलेखक यानी ट्रैसर अशफाक खान ने बताया कि 1905-06 में महाराजा होलकर ने जमीनों के रिकॉर्ड तैयार करवाए थे, जिनमें से 2001 में कई नक्शे पानी में भीग भी गए थे। लिहाजा तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने इनकी सुध ली तथा संरक्षिदत करने के निर्देश दिए, जिसके चलते सभी 676 गांवों के राजस्व रिकॉर्ड को संरक्षित करने का काम किया गया तथा अलमारियों में यह रिकॉर्ड रख दिए हैं। ये रिकॉर्ड इतने बेशकीमती हैं कि तहसील न्यायालयों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक चलने वाले राजस्व प्रकरणों में सहायक साबित होते हैं तथा कई सरकारी जमीनों की लड़ाई शासन-प्रशासन इन रिकॉर्ड के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय तक जीता है। इन रिकॉर्डों को संरक्षित करने वाले श्री खान समेत आधा दर्जन कर्मचारियों को पूर्व कलेक्टर श्री सिंह ने 25-25 हजार रुपए का पुरस्कार देने के साथ प्रशस्ति-पत्र भी सौंपे। दरअसल ग्वालियर स्थित लैंड रिकॉर्ड मुख्यालय भी सभी राजस्व रिकॉर्डों को ऑनलाइन उपलब्ध करा रहा है तथा यह काम इंदौर जिले में सबसे बेहतर तरीके से हुआ है। केवल खजराना समेत जागीरी के ऐसे 17-18 ऐसे गांव हैं, जिनमें राऊ-मानपुर व अन्य शामिल है, जहां के त्रुटिपूर्ण रिकॉर्डों को अब ठीक किया जा रहा है।

अंग्रेजों ने 1925 से लेकर 30 तक पूरे देश में जमीनों के एक-एक इंच के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था, जिसे राजस्व भाषा में मिसल बंदोबस्त कहा जाता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर केन्द्र एवं राज्य सरकारें जमीनों का प्रबंधन करती है। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के अलग होने के चलते कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड गायब भी हो गए तथा इंदौर का मिसल बंदोबस्त भी 1925 में हुआ था, तत्पश्चात, केवल सांवेर के ही 30 गांवों का ही मिसल बंदोबस्त हो सका। 2001-02 में तत्कालीन दिग्गी सरकार ने नए सिरे से मिसल बंदोबस्त के प्रयास किए, लेकिन जमीनी जादूगरों ने उसे बंद करवा दिया। हालांकि देवास, रतलाम, झाबुआ समेत कुछ जिलों में ही मिसल बंदोबस्त हुए तथा इंदौर में चूंकि जमीनों के बड़े खेल हुए, लिहाजा अब मिसल बंदोबस्त होता है तो कई नए विवाद भी उठ खड़े होंगे। 

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