जनिये क्या है बिल्वपत्र की महिमा, जड़ों में होता है महादेव का वास

बिल्वपत्र के वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहा गया है। इसके अलावा ऐसी मान्यता है कि इसकी जड़ों में महादेव का वास है। वही तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी हों, तो उसे त्रिदेव का रूप मानते हैं।इसके अलावा किंवदंती है कि एक बार पार्वती ने अपनी उंगलियों से अपने ललाट पर आया पसीना पोछकर फेंक दिया। आपकी जानकारी के लिए बता दें की उनके पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं। उसी से बेलवृक्ष उत्पन्न हुआ। इसके ज्यादातर पेड़ों को मंदिरों के आसपास ही लगाया जाता है। वही शिवपुराण में वर्णित है कि घर पर बेल का वृक्ष लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। 

ऐसी मान्यता यह भी है कि जिस स्थान पर यह पौधा या वृक्ष होता है, वह काशी तीर्थ के समान पवित्र और पूजनीय स्थल हो जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि घर का हर सदस्य यशस्वी तथा तेजस्वी बनता है। साथ ही ऐसे परिवार में सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव रहता है। घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती।प्रदूषण की मार झेलते शहरों में वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में बिल्वपत्र का वृक्ष महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध तथा पवित्र बनाए रखता है। इस पेड़ के प्रभाव के कारण आसपास सांप या अन्य विषैले जीव-जंतु भी नहीं फटकते।बेलपत्र तोड़ने के नियमों को ध्यान में रखते हुए पूजा करना ही श्रेष्ठ होता है। 

टूटे हुए बेलपत्र यदि अच्छी अवस्था में हों तो एक से अधिक बार भी शिवपूजा में उपयोग किए जा सकते हैं। वही ध्यान रखें कि बेलपत्र सूखे और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में न हों।इसके अलावा आचार्य चरक तथा कई अन्य आयुर्वेदिक पद्धतियों में बेल को पाचन के लिए औषध माना गया है।इसके अलावा  पेट के रोगों, आंतों से संबंधित परेशानियों, पुरानी पेचिश, दस्त तथा बवासीर में बेल बहुत उपयोगी है। वही इससे आंतों की कार्यक्षमता बढ़ने के साथ भूख भी खुलती है तथा इंद्रियों को बल मिलता है। कुछ लोग इसके फल के गूदे को डिटर्जेंट के रूप में भी उपयोग करते हैं, यानी कि यह कपड़े धोने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। कई चित्रकार अपने रंगों में बेल मिलाते हैं। यह चित्रों पर एक सुरक्षात्मक परत लगा देता है।

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