श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में भारतीय सेना को आदेश दिया है कि वह 46 साल तक जमीन के इस्तेमाल का किराया चुकाए। यह मामला कुपवाड़ा जिले के तंगधार इलाके के निवासी अब्दुल मजीद लोन से जुड़ा है, जिनकी जमीन 1978 से सेना के कब्जे में थी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक, वैधानिक और मानव अधिकार है। अब्दुल मजीद ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सेना ने उनकी 12 कनाल और 14 मरला जमीन का किराया अब तक नहीं चुकाया। जस्टिस वसीम सादिक नरगल की बेंच ने 11 नवंबर को इस पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सेना ने जमीन पर कब्जा बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के किया और किराया न चुकाकर याचिकाकर्ता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया। केंद्र सरकार और सेना ने दावा किया था कि उन्होंने जमीन पर कब्जा नहीं किया है, लेकिन कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कुपवाड़ा के उपायुक्त को निर्देश दिया कि वे तहसीलदार की अध्यक्षता में राजस्व अधिकारियों की एक टीम बनाकर किराए का आकलन करें। यह प्रक्रिया दो हफ्तों के भीतर पूरी होनी चाहिए। इसके बाद सेना को एक महीने के भीतर किराया चुकाने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार या उसकी एजेंसियां किसी भी नागरिक की संपत्ति पर बिना कानूनी प्रक्रिया के कब्जा नहीं कर सकतीं। कर्नाटक कैबिनेट में फेरबदल के आसार, शिवकुमार की कुर्सी पर भी फैसला संभव संभल मस्जिद हिंसा के बाद पहला जुम्मा, चप्पे-चप्पे पर फ़ोर्स तैनात, ड्रोन से निगरानी क्या बंगाल के काली मंदिर में बंद हो जाएगी पशुबलि? हाईकोर्ट ने कही ये बात