मेरे हिस्से हार बहुत है... माना कि अधिकार नही है किन्तु इतना कह सकता हूँ तुम से दूर इसी दुनिया में मैं भी जीवित रह सकता हूँ जिन के हिस्से रातें लम्बी और राई से दिन छोटे हैं अपनी दुनिया अलग बनाने वाले लोग वही होते हैं नए-पुराने सपने तोड़े इतना ही उपकार बहुत है तुम्हें मुबारक जीत तुम्हारी मेरे हिस्से हार बहुत है जिन के आगे सूर्य है फीका जिन को पर्वत झुका न पाए तुम ने अपने जीवन पथ पर सदा वही लोग ठुकराए आनाकानी रूठा-रूठी चली नही नैनों के आगे हम ने नींदें पूरी की हैं मखमल के बिस्तर पर जागे जग भर के आभारी हैं अब तुम को भी आभार बहुत है तुम्हें मुबारक जीत तुम्हारी मेरे हिस्से हार बहुत है तुम से दूर हुए हैं तब से इतना ही तो कर पाए हैं तुम जैसे ही चेहरे का आंखों में चित्र बना पाए हैं गीतों में रच पीड़ा मन की सुनने और सुनाने वाले हम दोनों हैं वही प्रेम के ढाई आखर गाने वाले तुम से दूर तुम्हारा प्रेमी कुछ दिन से बीमार बहुत है तुम्हें मुबारक जीत तुम्हारी मेरे हिस्से हार बहुत है. -अर्पित 'अदब'