इंदौर: मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और गांधी परिवार के बेहद विश्वस्त कांग्रेसी नेता कमलनाथ आज अपना 76 साल के पूरे हो चुके हैं। जब भी देश की सियासत के अहम किरदारों की बात होती है, तो कमलनाथ का नाम शीर्ष नेताओं की लिस्ट में आता है। उन्होंने मध्यप्रदेश में 15 वर्षों के वनवास को खत्म कर एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता दी थी, हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के बाद उनकी सरकार गिर गई थी। 18 नवंबर 1946 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ आज मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में कांग्रेस का एक जाना माना चेहरा हैं। कमलनाथ की शुरूआती शिक्षा कानपुर में हुई। पिता महेंद्र नाथ की इच्छा थी कि बेटा वकील बने, किन्तु कमलनाथ की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। कमलनाथ देहरादून स्थित दून स्कूल के छात्र रहे हैं। कहा जाता है कि दून स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही वह पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के संपर्क में आए थे और वहीं से उनकी सियासत में एंट्री की नींव तैयार हुई थी। सियासी जानकार बताते हैं कि वक़्त के साथ ही कमलनाथ और संजय गांधी की मित्रता दिन व दिन गहरी होती चली गई, मगर एक वक्त ऐसा आया जब दोनों की दोस्ती में दूरियां आ गईं, वो समय था जब कमलनाथ कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ने चले गए। हालांकि दोनों के दूर होने के बाद उनकी दोस्ती कम नहीं हुआ। ये दोस्ती सियासत में भी चर्चे में रहती थी, वजह थी दोनों का हरदम साथ रहना। संजय गांधी और कमलनाथ की मित्रता को लेकर एक किस्सा भी मशहूर है कि 'जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी थी। तब एक मामले में संजय गांधी को तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। उस वक़्त इंदिरा गांधी को संजय गांधी की सुरक्षा की चिंता थी। ऐसे में कमलनाथ, संजय गांधी के पास जेल जाने के लिए जानबूझकर एक जज से लड़ लिए थे। जिसके बाद अवमानना के आरोप में कमलनाथ को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था।' 1984 सिख दंगों में आया था कमलनाथ का नाम:- बता दें कि कमलनाथ पर पार्टी के दिल्ली के कांग्रेसी नेताओं जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार के साथ 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ को भड़काने का इल्जाम था। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि इन नेताओं ने दिल्ली के रकाबगंज गुरूद्वारे के बाहर भीड़ को भड़काया जिसके चलते हिंसा शुरू हुई और उनके सामने ही दो सिख युवकों की हत्या हुई। इस मामले की जांच नानावटी आयोग ने की और कमल नाथ को बेनिफिट ऑफ डाउट देकर केस से बाहर कर दिया गया। बताया जाता है कि इस समय आयोग ने दो लोगों की गवाही सुनी थी, जिसमें तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर संजय सूरी शामिल थे और सूरी ने कहा था कि कमलनाथ घटनास्थल पर मौजूद थे। बाद में कमलनाथ ने भी इस बात को कबूल कर लिया था कि वो मौके पर थे, लेकिन उनके वहां होने का मकसद दंगा भड़काना नहीं, बल्कि मौजूद भीड़ को शांत कराना था।बता दें कि दिल्ली में जिस हिसाब से दंगे भड़के थे उनके कारण लगभग 3000 सिखों की जान गई थी। घटना की जांच 25 वर्षों बाद हुई थी और इसमें ये माना गया था कि कमलनाथ के खिलाफ पर्याप्त प्रमाण मौजूद नहीं हैं। CM नीतीश कुमार ने किया बड़ा ऐलान, बिहार पुलिस में होगी बंपर भर्तियां साधु की शक्ल में आया युवक और पूर्व सांसद पर कर दिया हमला राहुल बोले राष्ट्रगीत बजेगा लेकिन बज गया नेपाल का राष्ट्रगान, BJP ने उठाए सवाल