नई दिल्ली: भारत के टुकड़े कर अलग इस्लामी मुल्क की मांग करने वाली मुस्लिम लीग की स्थापना आज ही के दिन 1906 को ढाका में हुई थी। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि जिस ढाका में इसकी स्थापना हुई थी और जहाँ से मुस्लिम लीग ने इस्लामी मुल्क पाकिस्तान की मांग की थी, वही इलाका अब बांग्लादेश के रूप में दूसरा देश बन चुका है। ये अलग बात है कि, बांग्लादेश भी मुस्लिम देश ही है। भारत में द्विराष्ट्र का सिद्धांत (Two Nation Theory) पहली दफा सर सैयद अहमद खां ने दिया था, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापकों में शामिल थे। सैयद अहमद खां ने 1886 में मोहम्मडन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी, मगर उस समय इसका सियासत से कोई लेना-देना नहीं था। हालाँकि, बाद में इससे कट्टरपंथी लोग जुड़ते गए और इसे राजनीति में घसीट लिया गया। इसी बीच 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में 3000 लोगों की उपस्थिति में मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग नाम का प्रस्ताव नवाब ख्वाजा सर सलीमुल्लाह बहादुर और हकीम अजमल खान ने रखा था। इस प्रकार देश में मुस्लिमों के नाम पर पहले सियासी दल का गठन हुआ था। इसके पीछे मंशा यही थी कि कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी है और मुस्लिमों के लिए एक अलग दल बनाने की आवश्यकता है। मुस्लिम लीग का गठन होते ही देश में कट्टरपंथ पनपने लगा और राजनीति में ध्रुवीकरण का बीज पड़ गया। हालाँकि, मुस्लिम लीग वैसी तो, नवाबों, जमींदारों और दौलतमंद मुसलमानों की ही पार्टी थी। लेकिन, बनी मुस्लिमों के नाम पर थी, तो मुस्लिम समुदाय का एकमात्र नुमाइंदा होने का दावा करने लगी। मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्यों में ख्वाजा सलीमुल्लाह, विकार-उल-मुल्क, सैयद आमिर अली, सैयद नबीउल्लाह, खान बहादुर गुलाम तथा मुस्तफा चौधरी शामिल हैं। मुस्लिम लीग के पहले अध्यक्ष सर सुल्तान मुहम्मद शाह थे। भले ही मुस्लिम लीग के लोग यह दावा करते थे कि वह देश की आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते हैं, मगर वास्तविकता यही थी कि इस संगठन का मकसद केवल इस्लामी राज की स्थापना करना ही था। मुस्लिम लीग ने खुद अपने उद्देश्यों में यह स्पष्ट कर दिया था, उसके नेताओं का कहना था कि हमारा मकसद मुसलमानों में ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी पैदा करना है और ब्रिटिश सरकार से मुस्लिमों के लिए ज्यादा से ज्यादा अधिकारों को हासिल करना है। मुसलमानों के प्रति दूसरे समुदायों के पूर्वाग्रह से निपटना भी मुस्लिम लीग के उद्देश्यों में शामिल था। मुस्लिम लीग के इन उद्देश्यों के कारण ही ब्रिटिश सरकार को भारत में तेजी से उभर रहे राष्ट्रवाद से निपटने के लिए एक हथियार मिल गया था। इसके बाद 1930 में पहली दफा मुस्लिम लीग ने इस्लामी मुल्क की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इसके बाद मुस्लिम लीग ने यह प्रोपेगेंडा फैलाना शुरू कर दिया कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग मुल्क हैं। इसलिए अलग इस्लामी देश, मुसलमानों के लिए जरूरी है। 1913 में मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग से जुड़ गए। शुरुआती दिनों में वह कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के मेंबर रहे, मगर आखिर में उन्होंने भी इस्लाम के नाम पर कांग्रेस छोड़कर पूरी तरह मुस्लिम लीग अपना ली। 1940 में पहली दफा जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में कहा था कि हिंदू और मुसलमानों का एक देश के रूप में रहना असंभव है। हालांकि, इस मांग का मुस्लिम लीग के ही एक धड़े ने विरोध भी किया था। इस गुट ने ऑल इंडिया जम्हूर मुस्लिम लीग नाम से नई संस्था का गठन कर लिया। लेकिन आखिर में इसका विलय कांग्रेस में हो गया। लेकिन, अब तक मुस्लिम लीग काफी ताकतवर हो चुकी थी और देश का हर नवाब और दौलतमंद मुसलमान उनके साथ आ चुका था। इसके बाद जिन्ना ने ताकत के जोर पर इस्लामी देश की मांग मनवाने का ऐलान कर दिया, जिसका नतीजा डायरेक्ट एक्शन डे (Direct Action Day) के रूप में देखने को मिला। 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में जिन्ना और हुसैन शहीद सोहरावर्दी के आदेश पर मस्जिदों से हथियार बांटे गए और मुसलमानों को हिन्दुओं का कत्लेआम करने का हुक्म सुना दिया गया। जिसके बाद मुस्लिम तलवारों, भालों और अन्य हथियारों को लेकर हिन्दुओं पर टूट पड़े, हज़ारों की संख्या में हिन्दू मारे गए, उनकी बहन-बेटियों के वीभत्स सामूहिक बलात्कार हुए। आखिरकार, कांग्रेस ने भारत के बंटवारे की मुस्लिम लीग की मांग को मान लिया, यही ब्रिटिश सरकार भी चाहती ही थी। लेकिन, अफ़सोस इस बात का है कि, हमने इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा। आज भी वही बातें चल रहीं हैं, JNU का पूर्व छात्र शरजील इमाम, असम को भारत से काटने की साजिशें रच रहा है और भीड़ सुन रही है, जैसे मुस्लिम लीग के नेताओं को सुनती थी। कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) भारत को 2047 तक इस्लामी मुल्क बनाने के मिशन पर काम कर रहा है और उसे हर तरफ से समर्थन मिल रहा है। 1947 में भी दलितों के बड़े नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ने भारत की बजाए लाखों दलितों को लेकर पाकिस्तान जाना पसंद किया था, लेकिन हश्र क्या हुआ। खुद मंडल तो पाकिस्तान छोड़कर भारत भाग आए, लेकिन, अपने साथ गए लाखों लोगों को छोड़ आए वहां घुट-घुटकर मरने के लिए। आज भी यदि हमने इतिहास से सबक नहीं लिया, तो वो दिन दूर नहीं, जब भारत माता के सीने पर फिर आरी चलेगी और उसकी संतानों के रक्त से यहाँ की भूमि लाल होगी। '50-100 सालों में मुस्लिम शासन आ जाएगा, फिर राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दी जाएगी..' 9 माह में 30000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है पंजाब की AAP सरकार, कैसे पूरे करेगी चुनावी वादे ? भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को वोट मिल पाएंगे ? शशि थरूर ने दिया जवाब