गुरु पूर्णिमा विशेष: ज्ञानोपार्जन या धनोपार्जन, आखिर क्या है शिक्षा का मूल उद्देश्य ?

गुरु पूर्णिमा का भारतवर्ष में काफी महत्त्व है, यहां गुरु को देवताओं से भी बड़ा स्थान दिया गया है। इससे साबित होता है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति में गुरु को कितना उच्च स्थान प्राप्त है। यहां तक कि गुरु की तुलना साक्षात् परब्रम्ह से भी की गई है। गुरु पूर्णिमा प्राचीन धर्मग्रन्थ महाभारत के रचियता महर्षि वेद व्यास जी को समर्पित है। महर्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास के पूर्णिमा को हुआ था। उनको समूची मानव जाति का प्रथम गुरु माना जाता है।

किन्तु वर्तमान काल में, जब शिक्षा एक व्यवसाय और शिक्षक मात्र एक विक्रेता बन कर रह गया है, ऐसे में हमारी प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा की कल्पना करना दिवास्वप्न की तरह ही है। प्राचीन युग में शिक्षक को प्रमुख स्थान प्राप्त था और बालक को गौण। वर्तमान युग की शिक्षा में इसका बिल्कुल विपरीत हो गया है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि आधुनिक शिक्षा में शिक्षक का स्थान गौण हो चुका है और बालक का प्रमुख, आज के समय में ज्ञान का आंकलन मात्र कागज़ के उस टुकड़े से किया जाता है, जिसे हम डिग्री कहते हैं। 

हमारी पुरातन शिक्षा बालक के मानसिक विकास पर जोर दिया करती थी, जिसके अनुसार मात्र ज्ञानार्जन को ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य हुआ करता था, किन्तु अब उस ज्ञानार्जन की जगह धनार्जन ने ले ली है। अब धनोपार्जन के पीछे एक विकल्प की तरह शिक्षा का सहारा लेता विद्यार्थी ज्ञान की कसौटी पर कितना खरा उतरेगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है। 

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