खंड-खंड हो जाता भारत, अगर न होता हिंदुस्तान का ये 'लौह पुरुष'

भारत की आज़ादी के लिए कई स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने अपना बलिदान दिया था। स्वाीधनता संग्राम सेनानियों की कोशिश के चलते ही भारत आजाद हो पाया और देश को अपने अधिकार क्षेत्र के आसमान में अपना ध्वज फहराने की और तमाम आजादी मिली। मगर इस प्रयास में देश का बंटवारा भी हुआ जिसे एक बड़ी घटना माना जाता है। वर्ष 1947 को हुई इस घटना को लेकर यह बात सामने आई है कि स्वाधीन भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत विभाजन के पक्ष में नहीं थे।

उन्हें भारत के विभाजन की बात किसी भी शर्त पर मंजूर नहीं थी। उन्होंने 5 जुलाई 1947 को रियासतों को लेकर अपनी नीति स्पष्ट रूप से सबके सामने रखी। उन्होंने रियासतों को तीन विषयों, सुरक्षा, विदेश और संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल करने की कोशिश करने का विचार सामने रखा। देशी रियासतें भारतीय संघ में विलय होने को राजी नहीं थीं। इन रियासतों में हैदराबाद, जूनागढ़ व कश्मीर मुख्य थे। पटेल ने पीवी मेनन के साथ मिलकर देशी राजाओं को इस बारे में समझाया भी था। जूनागढ़ से इसका काफी विरोध हुआ, तो वहां से नवाब पाकिस्तान की ओर चला गया। 

हैदराबाद को विलय करने के लिए जब सैन्य बल भेज दिया गया तो हैदराबाद निजाम ने सरेंडर कर दिया। जूनागढ़ और हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया था। रियासतों के विलय के लिए कहीं राजाओं को मनाना पड़ा तो कहीं रियासतों पर दबाव बनाया गया। पटेल भारत को अखंडतौर पर जोड़े जाने की संकल्पना के साथ आगे बढ़े थे, किन्तु प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय समस्या बता देने से कुछ मुश्किल हुई। पटेल ने जिस कुशलता से लक्ष्यद्वीप को भारत में मिलाया वह अतुलनीय है। आज जो हम कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से असम तक का भारत देख पाते हैं, तो इसके पीछे लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का अहम योगदान है। 

 

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