श्रीमंत मल्हारराव होल्कर, जिनके सामने अहमद शाह अब्दाली ने भी टेक दिए थे घुटने

भारत के इतिहास में ऐसे अनगिनत योद्धा हुए हैं, जिन्होंने दुनियाभर में अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है, लेकिन जिन लोगों के हाथ में देश का इतिहास लिखने की बागडौर थी, उन कलमकारों ने इन वीरों के साथ न्याय नहीं किया और वे गुमनामी के अंधेरों में ही गम होकर रह गए। इन्ही में से एक थे महायोद्धा मल्हारराव होलकर जी, जिनकी आज जयंती है। अत्याचारी, हत्यारे और लुटेरे मुगलों के महिमामंडन में पन्नो को रंगने वालों ने महायोद्धा मल्हारराव होलकर जी को भी भगोड़ा करार दिया था. किन्तु उसकी हकीकत कुछ और ही थी.

पानीपत के निर्यायक युद्ध में इस वीर योद्धा मल्हार राव ने लुटेरे और लूटेरे अहमद शाह अब्दाली की सेना को नेस्तनाबूद कर दिया था. इस लड़ाई में जब विश्वास राव पेशवा वीरगति को प्राप्त हो गये तब मराठो का मनोबल गिरने लगा, ऐसे वक़्त में तत्कालीन मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने मल्हार राव को बुला कर उनसे उनकी पत्नी पार्वतीबाई को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का आग्रह किया क्योकि मराठे अब्दाली की सेना के क्रूर और महिलाओं के प्रति बेहद ही घृणित नजरिये से भली-भाँती परिचित थे. मल्हार राव ने इस आदेश का पालन किया जिसे बाद में झोलाछाप चाटुकार इतिहासकारों ने दुसरे रूप में होलकर जी के युद्ध छोड़कर भाग जाने की झूठी कहानी गढ़ कर दुष्प्रचारित किया.

कालान्तर में इस पराक्रमी योद्धा मल्हार राव का देहावसान 20 मई 1766 में आलमपुर में हो गया. इस महायोद्धा की एक ही सन्तान थी जो बहुत पहले एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी . खांडेराव की मौत के बाद उनकी धर्मपत्नी अहिल्याबाई होलकर को मल्हार राव ने सती होने से रोका था. अहिल्या के बेटे और मल्हार राव के पोते माले राव को इंदौर की रियासत मिली. किन्तु कुछ ही महीनों में उसकी भी मौत हो गई. उसके बाद अहिल्याबाई होलकर ने सत्ता की बागडौर संभाली और वो एक कुशल शासिका साबित हुई. आज उस महान योद्धा के जन्म दिवस पर हम उन्हें बारम्बार नमन और वन्दन करते है और उनकी वीरगाथा को सच्चे रूपों में लोगों के समक्ष रखने का संकल्प भी लेते हैं.

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