आसमान छूने की महत्वाकांक्षाओं के बीच भागमभाग भरी जिंदगी, दिन-ब-दिन बढ़ रहे प्रतियोगिता भरे माहौल ने सबसे अधिक युवा पीढ़ी को हताश और निराश किया है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में रोज़ाना लगभग तीन हजार लोग विभिन्न परेशानियों या अवसाद के चलते खुदकुशी कर लेते हैं यानी प्रति 40 सेकंड में एक शख्स मौत को गले लगा लेता है। हैरान करने वाली बात ये है कि आत्महत्या के मामलों में 18 से कम उम्र के किशोर की संख्या काफी अधिक है। अध्ययन में पाया गया है कि मौजूदा दौर में नवयुवक एवं किशोर अपनी हार स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। जिस कारण ख़ुदकुशी की घटनाएं बढ़ी है। अक्सर निराशा या आवेश में युवा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। लेकिन अगर व्यक्ति चुनौतियों और परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करे, तो इन्हें टाला जा सकता है। कठिनाइयां हर किसी के जीवन में आती है, किन्तु उनसे हारकर उम्मीद छोड़ने की बजाए अगर उनसे तटस्थता व संबल से निपटा जाए तो हालात बदल सकते हैं। आत्महत्या बुजदिली और असफलता का प्रतीक है। सकारात्मक सोच इस तरह की घटनाओं को रोकने में कारगर है। वहीं, अकेलापन इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देता है। किसी से अपने दिल की बात ना कह पाना, अंदर ही अंदर घुटते रहना, व्यक्ति को डिप्रेशन में धकेल देता है, जहां से जीवन बोझ लगने लगता है और उससे छुटकारा पाने की इच्छा प्रबल होने लगती है। इन्ही चीज़ों को समझकर, 2003 में विश्व में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोकथाम लगाने एवं इस समस्या के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस आरंभ किया गया था। ताकि ईश्वर के अनमोल वरदान 'जीवन' के प्रति लोगों की विचारधारा बदले और कोई भी अपने स्वजनों को बीच मझधार में अकेला छोड़कर ना जाए। पेट्रोल-डीज़ल के भाव में भारी गिरावट, जानिए क्या हैं आज के रेट रोनाल्डो ने अपने नाम दर्ज की एक और सफलता, बने दुनिया के दूसरे 100 इंटरनेशनल गोल करने वाले फुटबॉलर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल रुकने से शेयर मार्केट में आई भारी गिरावट, ये है हाल