आप सभी को बता दें कि कल दशमी है और कल आने वाली दशमी को आशा दशमी कहा जाता है. आशा दशमी का व्रत महाभारत काल से मनाया जाता रहा है. ऐसे में ऐसा कहा जाता है कि आशा दशमी में भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और आशा दशमी का व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. आपको बता दें कि इस व्रत का महत्त्व भगवान श्रीकृष्ण ने पार्थ को बताया था और इस व्रत को आरोग्य व्रत भी कहा जाता है क्योंकि इस व्रत के प्रभाव से शरीर निरोगी रहता है, मन शुद्ध रहता है और व्यक्ति को असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. ऐसे में इस व्रत के दिन कई बातों का ध्यान रखना चाहिए जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. सबसे पहले आशा दशमी व्रत में प्रात:काल के समय ही स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें और इसके बाद व्रत रखकर देवताओं की पूजा करें. अब इसके बाद रात्रि में पुष्प रोली चंदन आदि से दस आशा देवियों की पूजा करें और प्रसाद ग्रहण करें. अब दसों दिशाओं में घी के दीपक जलाकर धूप, दीप, नैवेद्य, फल आदि आशा देवियों को समर्पित करें और व्रत की पूजा में अपने कार्य की सिद्धि के लिए प्रार्थना करें और जब तक मनोकामना पूर्ण न हो तब तक इस व्रत को अवश्य करें। वहीं पूजा विधि के साथ उद्यापन विधि के बारे में भी जान लें. इसके लिए आशादेवियों की सोने, चांदी अथवा मिट्टी से प्रतिमा बना लें और ऐन्द्री, आग्रेयी, याम्या, नैऋति, वारुणी, वाल्व्या, सौम्या, ऐशनी, अध्: तथा ब्राह्मी इन दस आशा देवियों से कामनाओं की सिद्धि के लिये प्रार्थना करें. आपको बता दें कि इस व्रत को हर छह मास, एक वर्ष या दो वर्ष के लिए करना चाहिए और व्रती को अपने आंगन में दसों दिशाओं की पूजा करनी चाहिए. इसी के साथ दसों दिशाओं में घी के दीपक जलाकर धूप दीप और फल आदि समर्पित करना चाहिए. ध्यान रहे इसके बाद ब्राह्मण को दक्षिणा देकर प्रसाद ग्रहण कराना चाहिए. मंत्र - आशाश्रचशा: सदा सन्तु सिद्धय्नताम मे मनोरथा: भवतिनाम प्रसादेन सदा कल्याणमसित्व्ती अर्थ - हे ! आशा देवियों, मेरी आशाएं सदा सफल हों, मेरे मनोरथ पूर्ण हों, आपके अनुग्रह से मेरा सदा कल्याण हो।