चेन्नई : क्या होगा जब कोई न्यायधीश ही देश में पैदा होने को शर्मनाक बताए। ये कारनामा मद्रास हाईकोर्ट के जज सी एस करनन ने किया है। उनका कहना है कि वो भारत में पैदा होने पर शर्मिंदा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने उनके ट्रांसफर के बारे में कहा था कि कोई भी इस जज को अपना केस न दे। करनन अपने तबादले से खफा है, उनका कहना है कि वो निचली जाति के है, इसलिए उनका ट्रांसफर किया गया है। इस मामले में उन्होने स्वतः संज्ञान लेते हुए अपने ही ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी करनन से किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान लेने का हक छीन लिया। इतना ही नहीं उच्चतम न्य़ायलय ने हाइ कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को जस्टिस करनन से न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज छीनने की भी छूट दे दी। 12 फरवरी 2016 को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टी एस ठाकुर ने करनन का तबादला कोलकाता हाइ कोर्ट में कर दिया। इसके बाद जब करनन ने खुद ही अपने तबादले को रद्द कर दिया तो मद्रास हाइ कोर्ट के रजिस्टार जनरल ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट को तलब किया। कोर्ट ने कहा कि जस्टिस करनन सिर्फ उन्ही मामलों में आदेश दे सकते हैं, जो उन्हें सुनवाई के लिए आवंटित किए जाएंगे। इस मामले में घी डालते हुए करनन ने कहा कि मैं शर्मिंदा हूं कि मैं भारत में पैदा हुआ हूं। मुझे ऐसी जगह जाना है, जहां जाति प्रथा और भेदभाव न हो। जस्टिस करनन ने अपने तबादले पर रोक के आदेश की प्रति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कानून मंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, रामविलास पासवान, मायावती, राष्ट्रीय अजा-जजा आयोग को भी भेजी है। इससे पहले भी जस्टिस करनन विवादों में रहे है। इससे पहले भी उन्होंने अपने ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निचली अदालत में नियुक्ति को लेकर जारी आदेश पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू कर दी थी। गत वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में भी रोक लगाई थी।