गुवाहाटी: असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार ने सार्वजनिक स्थानों, रेस्टोरेंट और होटलों में गोमांस परोसने पर रोक लगाने का फैसला किया है। इसके साथ ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी गोमांस के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह फैसला 4 दिसंबर 2024 को राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया, जिससे विपक्षी पार्टियों, विशेष रूप से कांग्रेस और एआईयूडीएफ (AIUDF), ने नाराजगी जताई है। कांग्रेस नेता और सांसद गौरव गोगोई ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे असम सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड में बीजेपी की हार से नाराज हैं और असम के आगामी चुनावों में जनता बीजेपी को उनके कुशासन और भ्रष्टाचार के लिए सबक सिखाएगी। एआईयूडीएफ के विधायक रफीकुल इस्लाम ने कहा कि सरकार को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि लोग क्या खाएँ और क्या पहनें। उन्होंने सवाल उठाया कि जब बीजेपी शासित गोवा और नॉर्थईस्ट के अन्य राज्यों में बीफ पर पाबंदी नहीं है, तो असम में ऐसा क्यों किया जा रहा है। कांग्रेस के विधायक शेरमन अली ने इस फैसले को आरएसएस के एजेंडे का हिस्सा बताया और इसे संविधान पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि यह सरकार धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर समाज को बाँटने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस और मुस्लिमों के विरोध के बीच, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि अगर कांग्रेस असम में पूर्ण गोमांस प्रतिबंध चाहती है, तो वे इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने कांग्रेस नेता रिपुन बोरा से समर्थन की माँग की और कहा कि यदि कांग्रेस सहमति जताए, तो अगली विधानसभा सत्र में राज्य में गोमांस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है। सरमा ने कांग्रेस पर सामागुरी सीट को लेकर तंज कसा। उन्होंने पूछा कि क्या कांग्रेस इस सीट को पहले गोमांस बाँटकर जीतती रही है। दरअसल, सामागुरी सीट के हालिया उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, जो बीजेपी के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है। कांग्रेस नेता रकीबुल हुसैन ने आरोप लगाया था कि बीजेपी ने गोमांस बाँटकर चुनाव में जीत हासिल की है। इस पर मुख्यमंत्री सरमा ने कांग्रेस से सवाल किया कि क्या उनका यह आरोप सही है और यदि हाँ, तो इसका मतलब यह है कि कांग्रेस भी पहले इसी रणनीति का सहारा लेती रही होगी। इस मुद्दे पर जारी बयानबाजी और बहस ने राज्य की राजनीति में तनाव बढ़ा दिया है। विपक्ष इसे सांप्रदायिक एजेंडा कह रहा है, जबकि सरकार इसे असम की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के सम्मान का हिस्सा बता रही है। 'राहुल गांधी मुर्दाबाद' के नारे. संभल जा रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जनता ने पीटा..! क्यों? फ्रांस में 3 महीने भी नहीं टिक पाई नई सरकार, क्या 'मैक्रॉन' फिर संभालेंगे कमान? हेलो, मैं इंदिरा गांधी, 60 लाख रूपए दे दो..! SBI में आया फोन और फिर..