गुवाहाटी: असम की विधानसभा में केवल पांच विधायकों वाली बीजेपी के सत्ता प्राप्त करने के दो साल बाद ही राज्य की राजनीतिक फिज़ा में बदलाव दिखने लगा है. फिर चाहे बात मूल असमिया लोगों की हो या राज्य में बसे हिंदू बंगालियों की. प्रदेश में दोनों समुदाय ही भाजपा का महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं, लेकिन इस समय वे पार्टी के कुछ फैसलों से नाराज़ हैं. अब डेबिट कार्ड से नहीं होगा फ्रॉड, बैंक देंगे ये सुविधाएं एक तरफ तो यहां के जातीय संगठन नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को लेकर असम में पिछले कुछ समय से लगातार विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी में हज़ारों की संख्या में हिंदू बंगाली लोगों के नाम मौजूद न होने के कारण भाजपा को तीखी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. सत्ता पर काबिज भाजपा नागरिकता संशोधन विधेयक समेत कई मुद्दों पर विपक्षी पार्टियों और नागरिक संगठनों के लगातार विरोध के बाद अब बैकफुट पर नज़र आ रही है. एयर एशिया से साझेदारी तोड़ अब इसमें हिस्सेदारी खरीदेगा टाटा ग्रुप नागरिकता संशोधन विधेयक के लगातार विरोध के बीच प्रदेश की सरकार ने राज्य में पंचायत चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया है. लेकिन, भाजपा सरकार में गठबंधन में चल रही क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) ने पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ने का निर्णय लिया है. एजीपी के नेताओं का मानना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर असम के लोगों में भाजपा के प्रति बेहद नाराज़गी है.. खबरें और भी:- जेट एयरवेज को बचाने के लिए आगे आई मोदी सरकार, टाटा से मांगी मदद लगातार गिर रही सोने की कीमतों ने शादियों का सीजन आते ही मारी छलांग जानिए क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय प्रेस दिवस