प्रदूषण से बचने के लिए अस्थमा वाले अपनाएं ये उपाय, मिलेगी राहत

प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी गंभीर रूप से बढ़ने लगी हैं, जिनमें सबसे प्रमुख समस्या सांस की बीमारियों की है। विशेष रूप से अस्थमा के मरीजों के लिए प्रदूषण और भी अधिक परेशानी का कारण बनता है। अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें वायुमार्ग में सूजन और संकुचन होता है, जिससे मरीजों को सांस लेने में कठिनाई होती है। प्रदूषण के कारण वायुमार्ग में और अधिक सूजन हो सकती है, जिससे अस्थमा के लक्षण तेज हो सकते हैं। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को अपनी सेहत का ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ विशेष सावधानियां और उपायों का पालन करना चाहिए।

अस्थमा के मरीजों के लिए एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत जरूरी है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच, नियमित रूप से योगासनों का अभ्यास करना शरीर और फेफड़ों की क्षमता को बनाए रखने के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है। योग शरीर को लचीला बनाने के साथ-साथ सांस की नलिकाओं को खोलने में भी मदद करता है, जिससे अस्थमा के मरीजों को राहत मिलती है।

1. भुजंगासन: भुजंगासन एक प्रभावी योगासन है, जो अस्थमा के मरीजों के लिए बेहद लाभकारी है। इसे "कोबरा पोज" भी कहा जाता है। इस योगासन को करने से छाती, पेट और पीठ की मांसपेशियों में खिंचाव आता है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है। भुजंगासन से श्वसन तंत्र मजबूत होता है और फेफड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है, जिससे अस्थमा के मरीजों को सांस लेने में आसानी होती है। इसके अलावा, यह आसन रक्त संचार को बेहतर बनाता है और तनाव को कम करने में भी मदद करता है, जो अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकता है।

कैसे करें भुजंगासन: पेट के बल लेट जाएं और हाथों को कंधे के नीचे रखें। श्वास को अंदर खींचते हुए, धड़ को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएं। कूल्हों को जमीन पर रखें और सिर को पीछे की ओर झुका लें। कुछ सेकंड तक इस स्थिति में रहें और फिर धीरे-धीरे वापिस आ जाएं।

2. सेतुबंधासन: सेतुबंधासन अस्थमा के मरीजों के लिए एक और फायदेमंद योगासन है। यह योगासन छाती की मांसपेशियों को खोलता है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है। यह शरीर के निचले हिस्से को भी मजबूत करता है और पैरों, घुटनों, कमर और जांघों की मांसपेशियों को स्ट्रेच करता है। सेतुबंधासन से श्वसन तंत्र में सुधार होता है और अस्थमा के लक्षणों में भी राहत मिलती है।

कैसे करें सेतुबंधासन: पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़कर पैरों को कूल्हों के पास रखें। हाथों को शरीर के पास रखें और कंधों को नीचे रखें। श्वास को अंदर खींचते हुए, धड़ को ऊपर की ओर उठाएं और सिर और कंधों को जमीन पर टिकाए रखें। इस स्थिति में कुछ सेकंड के लिए रहें और फिर धीरे-धीरे वापिस आ जाएं।

3. मत्स्यासन: मत्स्यासन एक ऐसा योगासन है जो फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाने के साथ-साथ गले के अंगों को भी स्वस्थ रखता है। यह अस्थमा और अन्य श्वसन समस्याओं वाले लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है। इस आसन के अभ्यास से छाती का विस्तार होता है, जिससे फेफड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है और सांस लेने में आसानी होती है।

कैसे करें मत्स्यासन: सबसे पहले, पैर फैलाकर बैठ जाएं और दोनों हाथों को पीठ के पीछे रखें। श्वास को अंदर खींचते हुए, सिर को पीछे की ओर झुका लें और छाती को बाहर की ओर निकालें। पैरों के अंगूठों को छूने की कोशिश करें और इस स्थिति में कुछ सेकंड तक बने रहें।

4. प्राणायाम: योगासनों के साथ-साथ अस्थमा के मरीजों को प्राणायाम का अभ्यास भी करना चाहिए, क्योंकि यह सांस लेने की तकनीकों को सुधारने में मदद करता है। प्राणायाम से श्वसन तंत्र मजबूत होता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता में भी सुधार आता है। प्राणायाम का अभ्यास तनाव को कम करने, शरीर में ऊर्जा बढ़ाने और मानसिक शांति को बनाए रखने में मदद करता है।

भस्त्रिका प्राणायाम: भस्त्रिका प्राणायाम अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और साइनस जैसी श्वसन समस्याओं वाले लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है। यह प्राणायाम श्वास को तेज़ी से अंदर और बाहर खींचने की प्रक्रिया है, जो फेफड़ों को अधिक ऑक्सीजन प्राप्त करने में मदद करती है। यह प्राणायाम श्वसन तंत्र को मजबूत करता है और अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम: अनुलोम-विलोम एक सरल और प्रभावी प्राणायाम है, जो सांस को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस प्राणायाम में एक नासिका से सांस खींचकर दूसरी नासिका से बाहर छोड़ी जाती है। इसे रोजाना 5 से 8 मिनट तक करने से अस्थमा के मरीजों को बहुत राहत मिल सकती है। यह प्राणायाम न केवल श्वसन तंत्र के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह मानसिक शांति और तनाव को भी कम करता है। इसके नियमित अभ्यास से सिरदर्द, माइग्रेन, और रक्तचाप की समस्याओं में भी राहत मिलती है।

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