लखनऊ: उत्तर प्रदेश पुलिस की आतंकवाद विरोधी शाखा (ATS) ने नवंबर 2023 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से जुड़े सात आतंकवादियों को पकड़ने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हिरासत में लिए गए ज्यादातर लोग SAMU (स्टूडेंट्स ऑफ़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) नामक संगठन से जुड़े हैं। लेकिन, बड़ी संख्या में हुई इन आतंकवादियों की गिरफ़्तारी ने ATS के सब इंस्पेक्टर मोहम्मद अकरम खान द्वारा की गई पिछली जांच पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन्होंने पिछले साल ही SAMU को किसी भी संदेह से मुक्त कर दिया था और क्लीन चिट दे दी थी। क्या है मामला :- दरअसल, खुफिया एजेंसियां 2020 से SAMU की निगरानी कर रही थीं, खासकर जब AMU के भीतर CAA-NRC विरोधी हिंसा हुई थी, उसके बाद से ये संगठन एजेंसियों के राडार पर आ गया था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा अक्टूबर 2023 में पुणे इस्लामिक स्टेट (ISIS) मॉड्यूल के सदस्य शाहनवाज की गिरफ्तारी से एक बार फिर SAMU के कनेक्शन का पता चला, जिससे दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) दोनों की जांच बढ़ गई। 2022 की विवादास्पद जांच रिपोर्ट:- बता दें कि, 2020 में ATS अधिकारी सुशांत गौड़ के नेतृत्व में SAMU की प्रारंभिक जांच शुरू हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद गौड़ का ट्रांसफर हो गया और कमान सब इंस्पेक्टर मोहम्मद अकरम खान को मिली। अधिकारी खान ने 2022 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें SAMU को किसी भी राष्ट्र-विरोधी या आतंकवादी गतिविधियों से मुक्त कर दिया गया। नवंबर 2023 में हालिया गिरफ्तारियां 2022 की जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाती हैं कि यदि वो रिपोर्ट सत्य और तथ्य पर आधारित थी, तो महज एक ही साल बाद उस संगठन के 7 आतंकी कैसे गिरफ्तार हुए और कुछ अब भी फरार चल रहे हैं। अलर्ट हुईं जांच एजेंसियां:- शाहनवाज की गिरफ्तारी के बाद, उत्तर प्रदेश ATS ने तेजी से कार्रवाई की और एक महीने से भी कम समय में SAMU से जुड़े सात शीर्ष आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया। हालाँकि, फैजान बख्तियार, अब्दुल समद मलिक और हरीश फारूकी अभी भी फरार हैं। इन लोगों का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर छापेमारी चल रही है। 2022 की जांच रिपोर्ट की सटीकता के बारे में सवाल बने हुए हैं, खासकर जब SAMU अपना विस्तार करता रहा और अधिक कट्टरपंथियों को भर्ती करता रहा। वर्तमान घटनाक्रम पिछले आकलन के गहन पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। सामने आने वाली घटनाएं संभावित खतरों की निगरानी और मूल्यांकन की जटिलता को रेखांकित करती हैं, जिसमें एसएएमयू का मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में काम कर रहा है। जांच के नतीजे संभवतः छात्र संगठनों से जुड़े संभावित सुरक्षा जोखिमों को संबोधित करने के लिए भविष्य के दृष्टिकोण को आकार देंगे। दुनिया की पहली 'वैदिक सिटी' बनेगी रामनगरी अयोध्या! AI से होगा विकास, इस टेक्नोलॉजी कंपनी के साथ हुआ अनुबंध दो सीटों पर चुनाव क्यों लड़ रहे सीएम KCR ? तेलंगाना में पीएम मोदी बोले- ये किसानों और गरीबों के गुस्से का परिणाम 26/11 मुंबई हमलों के बाद 'मौन' क्यों थी मनमोहन सरकार ? खुद कांग्रेस सांसद ने अपनी किताब में उठाए सवाल